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मृतक के परिवार की गवाही भी विश्वसनीय! जानिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या बताया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मृतक के करीबी रिश्तेदार चश्मदीद गवाह का साक्ष्य ठोस, विश्वसनीय और विश्वसनीय है, तो उस पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट.

Written by Satyam Kumar |Updated : July 15, 2024 1:18 PM IST

Credibility Of Witness Of Deceased's Relatives: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में मृतक के भाइयों की गवाही को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि एक चश्मदीद गवाह मृतक के परिवार का सदस्य है, ऐसे साक्ष्य को खारिज नहीं किया जा सकता है. यदि मृतक के करीबी रिश्तेदार चश्मदीद गवाह का साक्ष्य ठोस, विश्वसनीय और विश्वसनीय है, तो उस पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है. वहींअपीलकर्ता को आत्मसमर्पण कर शेष सजा को पूरा करने के आदेश दिए हैं. वहीं राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वे राज्य नीति के अनुसार आरोपी को आत्मसमर्पण के बाद स्थायी छूट देने पर विचार करें. आइये जानते हैं पूरा वाक्या...

मृतक के करीबी रिश्तेदारों की गवाही भी विश्वसनीय: सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने मामले को सुना. अदालत ने मृतक के भाइयों की गवाही को अस्वीकार करने से इंकार कर दिया है.

अदालत ने कहा, 

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चूंकि गवाह मृतक के करीबी रिश्तेदार हैं, इसलिए हमने उनकी गवाही की बारीकी से जांच की है. हमें लगता है कि उनकी गवाही विश्वसनीय है. उनकी जिरह में कोई भी भौतिक विरोधाभास या चूक रिकॉर्ड पर नहीं लाई गई है.

अदालत ने आगे कहा, 

केवल इसलिए कि एक चश्मदीद गवाह मृतक के परिवार का सदस्य है, ऐसे गवाह के साक्ष्य को खारिज नहीं किया जा सकता है. यदि मृतक के करीबी रिश्तेदार चश्मदीद गवाह का साक्ष्य ठोस, विश्वसनीय और विश्वसनीय है, तो उस पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है.

अदालत ने स्पष्ट कहा कि अपीलकर्ता की भूमिका के संबंध में साक्ष्य सुसंगत हैं. उन तीनों ने मृतक पर शिकार करने वाली दरांती से हमला करने में अपीलकर्ता अभियुक्त संख्या 2 की स्पष्ट भूमिका बताई है. इस मामले में अन्य गवाह का साक्ष्य भी बहुत विश्वसनीय है, जो मृतक से संबंधित नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया: अपील खारिज की जाती है. हम अपीलकर्ता को शेष सजा भुगतने के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए एक महीने का समय देते हैं. अपीलकर्ता के आत्मसमर्पण के बाद, हम प्रतिवादी-राज्य को निर्देश देते हैं कि वह अपीलकर्ता के मामले में लागू नीति के अनुसार स्थायी छूट प्रदान करने के लिए विचार करे, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सह-आरोपी को स्थायी छूट का लाभ दिया गया है. राज्य अपीलकर्ता के आत्मसमर्पण की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर उचित निर्णय लेगा.

क्या है मामला?

इस मामले में कुल ग्यारह आरोपी थे. 11 आरोपियों पर शिव प्रसाद रेड्डी की दरांती से काटकर हत्या करने का आरोप लगा था. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी (अपराधिक साजिश), 148 और 302 के तहत मुकदमे को दर्ज किया. अपीलकर्ता (आरोपी संख्या 2) को भी भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 148 और 302 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है.

ग्यारह आरोपियों में से आरोपी संख्या 5 और 9 की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई. ट्रायल कोर्ट ने पाया कि आईपीसी की धारा 120-बी के तहत किसी भी आरोपी के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुआ है. ट्रायल कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपी संख्या 6, 7 और 8 किसी भी अपराध के दोषी नहीं थे और उन्हें बरी कर दिया गया. ट्रायल कोर्ट ने आरोपी संख्या 1 से 4 तथा आरोपी संख्या 10 और 11 को भारतीय दंड संहिता की धारा 148 और 302 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया.

अब इस मामले में आरोपी संख्या दो (अपीलकर्ता) अपनी सजा को चुनौती दी थी. चुनौती देने का आधार बनाया कि उसके खिलाफ मृतक के भाइयों ने गवाही दी है. सुप्रीम कोर्ट ने भाइयों की गवाही में किसी प्रकार की खामियां नहीं पाई. वहीं, आरोपी को आत्मसमर्पण करने के निर्देश दिए हैं.

Case Title: थतिरेड्डीगारी महेश्वर रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

Order Date: 08 July 2024