नई दिल्ली: 29-वर्षीय लड़की की प्रेग्नेंसी से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते समय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (Chattisgarh High Court) ने यह कहा है कि पति और पत्नी के बीच खराब होते रिश्ते और बिखरती शादी गर्भावस्था को खत्म करने का कारण नहीं हो सकते हैं, यह गर्भपात (abortion) का आधार नहीं होगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 29-वर्षीय एक गर्भवती महिला ने अबॉर्शन के लिए अदालत का दरवाजा खटकटाया। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी और यह भी कहा कि 'गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971' (The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) की धारा 3 के तहत पति के साथ खराब रिश्ते या टूटती शादी वो कारण नहीं हैं जिनके आधार पर गर्भपात की अनुमति मिल सकती है।
अदालत ने यह नोट किया है कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था किसी यौन अपराध, धोखाधड़ी या कन्सेंट न होने की वजह से नहीं हुई है और न ही उनकी शादी में किसी तीसरे मर्द की वजह से ऐसा हुआ है। बता दें कि याचिकाकर्ता की शादी नवंबर, 2022 में हुई थी लेकिन अब उनके रिश्ते में दरार आ गई है और इस वजह से वो गर्भपात करवाना चाहती हैं।
ऐसे में, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की न्यायाधीश पी सैम कोशी (Justice P Sam Koshy) का यह मानना है कि इस मामले में गर्भपात का कोई वैलिड कारण नहीं है; इस तरह के आधारों पर यदि गर्भपात की अनुमति दी जाने लगी तो 'गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम' का असली मतलब खत्म हो जाएगा।
सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने गर्भपात को 'अपराध' बताया है और कहा है कि चिकित्सा अधिकारी अबॉर्शन सिर्फ तब कर सकते हैं जब स्थिति बहुत 'गंभीर' हो; यह भी तब होगा जब कोई ज्ञानी और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी महिला को चेक करे और यह कहे कि महिला की शारीरिक या मानसिक सेहत को खतरा है या इस प्रेग्नेंसी से उनकी जान पर बन आ सकती है।
अदालत ने कहा कि अबॉर्शन की अनुमति तब भी दी जा सकती है जब होने वाले बच्चे के लिए यह रिस्क हो कि वो पैदा होकर गंभीर विकलांगता या बीमारियों का शिकार हो सकता है। यह कहकर अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया है और याचिकाकर्ता को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दी।