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संशोधित आईटी नियमों पर अदालत का सवाल: किसी कानून में असीमित विवेकाधिकार क्या स्वीकार्य है?

बंबई उच्च न्यायालय में संशोधित आईटी नियमों के खिलाफ याचिका दायर हुई है जिसमें सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि असीमित विवेकाधिकार क्या स्वीकार्य है?

Bombay High Court Petition against IT Rules

Written by Ananya Srivastava |Published : July 8, 2023 5:26 PM IST

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने फर्जी समाचारों संबंधी सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियमों में हालिया संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण सवाल किया।

अदालत ने याचिका की सुनवाई के दौरान यह पूछा है कि किसी कानून में अपार और असीमित विवेकाधिकार देना क्या कानूनी रूप से स्वीकार्य है? न्यायमूर्ति गौतम पटेल (Justice Gautam Patel) और न्यायमूर्ति नीला गोखले (Justice Neela Gokhale) की खंडपीठ ने इस याचिका की सुनवाई की है।

बंबई हाईकोर्ट की पीठ ने कही ये बात

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बंबई उच्च न्यायालय की इस पीठ ने कहा कि इन संशोधित नियमों के कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करने से पहले उसे इन नियमों में इस्तेमाल शब्दों- ‘फर्जी, झूठे और भ्रामक’ की सीमाओं के बारे में जानने की आवश्यकता है। खंडपीठ ने हाल में संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

संशोधित आईटी नियम के खिलाफ दायर हुई याचिका

संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया पर सरकार और उसके काम-काज के खिलाफ फर्जी खबरों की पहचान करने का अधिकार है। हास्य कलाकार कुणाल कामरा (Kunal Kamra), ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (Editors Guild of India) और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स’ (Association of Indian Magazines) ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है,

इस याचिका को दायर करते हुए इन्हें मनमाना एवं असंवैधानिक बताया है। याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर ‘खतरनाक प्रभाव’ पड़ेगा।

पीठ ने कही ये बात

पीठ ने शुक्रवार को कहा कि नियमों के अनुसार, जब कोई सामग्री/जानकारी फर्जी, झूठी और भ्रामक होगी तो कार्रवाई की जाएगी और प्राधिकारी को यह बताने का स्पष्ट अधिकार है कि सामग्री फर्जी है या नहीं।

इस मामले में तथ्यान्वेषी इकाई (एफसीयू) को प्राधिकारी का अधिकार दिया गया है। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘एफसीयू होना ठीक है, लेकिन हम इस एफसीयू को दिए गए अधिकार को लेकर चिंतित हैं। हमें जो अत्यधिक गंभीर लगता है, वह ‘फर्जी, झूठा और भ्रामक’ जैसे शब्द हैं।’’

अदालत ने सवाल किया कि क्या इसमें राय और संपादकीय सामग्री भी शामिल होगी। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता या मैं यह नहीं बता सकता कि इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं। क्या किसी कानून में इस तरह अपार और असीमित विवेकाधिकार होना कानूनी रूप से स्वीकार्य है? इन शब्दों की सीमाएं क्या हैं?’’

केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी, जिनमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या गुमराह करने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल है।

इन तीन याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित कर दे और सरकार को इन नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई न करने का निर्देश दे। केंद्र सरकार ने इससे पहले अदालत को आश्वस्त किया था कि वह 10 जुलाई तक तथ्यान्वेषी इकाई को अधिसूचित नहीं करेगी।