Ancestral Property: जब तक घर का मुखिया जीवित है, तब तक सामान्य तौर पर संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति नहीं बनती. लेकिन पिता या घर के मुखिया के मृत्यु हो जाने के बाद यह बहुत सामान्य है कि परिवार में भाइयों (दावा करने की स्थिति में बहन भी) के बीच विवाद की स्थिति खड़ी हो जाती है. ऐसे में पिता या घर के मुखिया के देहांत के बाद भाइयों और बहनों के बीच संपत्ति बंटवारे के नियम क्या हैं,आइये जानते है...
पैतृक संपत्ति में ऊपर की तीन पीढ़ियों की संपत्ति शामिल होती है. यानी, पिता को उनके पिता यानी दादा और दादा को मिले उनके पिता यानी पड़दादा से मिली संपत्ति हमारी पैतृक संपत्ति है. पैतृक संपत्ति में पिता द्वारा अपनी कमाई से अर्जित संपत्ति शामिल नहीं होती है, इसलिए उस पर पिता का पूरा हक रहता कि वो अपनी अर्जित संपत्ति का बंटवारा किस प्रकार करें.
जिसमें उन लोगों के नाम दर्ज होते हैं जिन्हे संपत्ति का हस्तांतरण किया जाएगा. इसके लिए परिवार के मुखिया या पिता के द्वारा पेशेवर की मदद ली जाती है जैसे कि किसी वकील या फिर किसी कानूनी विशेषज्ञ से. जो कि संपत्ति के बंटवारे में भूमिका निभाता है. सामान्य तौर पर पैतृक संपत्ति पर पुत्र का अधिकार जन्म से ही शुरू हो जाता है। अगर चार पीढ़ियों के वंश में किसी लड़के का जन्म हुआ है, तो उसे पैतृक संपत्ति खुद ही विरासत में मिल जाती है।
अगर पिता ने देहांत से पहले ही वसीयत बनाकर तैयार की है और संपत्ति का उचित बंटवारा किया है तो विवाद की स्थिति पैदा नहीं होती है. वसीयत के तहत पिता या परिवार का मुखिया कानूनी तौर पर अपनी संपत्ति को अपने बच्चों या अन्य किसी भी प्रिय को सौंपता है.
ऐसा भी होता है कि संपत्ति के मालिक या परिवार के मुखिया का देहांत हो जाए और उन्होंने संपत्ति के बंटवारे से संबंधित कागजी कार्य (वसीयत) नहीं किया हो, तो ऐसे में संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार के कानून के अनुसार किया जाता है. कोई भी संपत्ति जब किसी को हस्तांतरित कि जाती है तो वे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत की जाती है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में महिलाओं को पैतृक कृषि भूमि पर दावा करने का अधिकार नहीं था. यह भी अब बदल गया है. अब महिलाएं किसी अन्य पैतृक भूमि के समान ही कृषि भूमि पर अपना दावा कर सकती हैं. इस एक्ट कि धारा 6 संशोधन से पहले या बाद में जन्मी बेटियों को हमवारिस (Coparcener) बनाती है और उसे बेटों के बराबर अधिकार और दायित्व दे ती है. बेटियां 9 सितंबर, 2005 के पहले से प्रभाव से पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा ठोक सकती हैं.
यह बात ध्यान देने योग्य है कि कोर्ट ने पैतृक संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिया है. कोर्ट ने दोनों को एक समान माना है ,अब जब पैतृक संपत्ति में अधिकार के मामले में बेटे और बेटी में कोई फर्क ही नहीं रह गया है तो फिर बेटे की मृत्यु के बाद उसके बच्चों का अधिकार कायम रहे जबकि बेटी की मृत्यु के बाद उसके बच्चों का अधिकार खत्म हो जाए, ऐसा कैसे हो सकता है? मतलब साफ है कि बेटी जिंदा रहे या नहीं, उसका पिता की पैतृक संपत्ति पर अधिकार कायम रहता है। उसके बच्चे चाहें कि अपने नाना से उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी ली जाए तो वो ले सकते हैं.
अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया गया है तो आप विपक्षी पार्टी को एक कानूनी नोटिस भेज सकते हैं. आप अपने हिस्से पर दावा ठोकने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा भी दायर कर सकते हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि मामले के विचाराधीन होने के दौरान प्रॉपर्टी को बेचा न जाए, उसके लिए आप उसी मामले में कोर्ट से रोक लगाने की मांग कर सकते हैं. मामले में अगर आपकी सहमति के बिना ही संपत्ति बेच दी गई है तो आपको उस खरीदार को केस में पार्टी के तौर पर जोड़कर अपने हिस्से का दावा ठोकना होगा.
हिंदू कानून के मुताबिक अगर आप एक बिना बंटे हुए हिंदू परिवार के मुखिया हैं तो कानून के तहत आपके पास परिवार की संपत्तियों को मैनेज करने का अधिकार है. लेकिन इससे आपका संपत्ति पर पूरा और इकलौता अधिकार नहीं हो जाता, क्योंकि उस परिवार के हर उत्तराधिकारी का संपत्ति में एक हिस्सा, टाइटल और रुचि है. लेकिन कुछ अपवाद स्थितियों जैसे पारिवारिक संकट (कानूनी जरूरत), परिवार के भले के लिए या कुछ धार्मिक काम करने के दौरान आम संपत्ति का निपटारा किया जा सकता है.
भारत में पैतृक संपत्ति कानून हैं और ये कानून विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए अलग-अलग हैं. जैसे कि जो लोग हिंदू,सिख,जैन,बौद्ध है उनको हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति दि जाती है. और जिनका धर्म ईसाई धर्म है उनको भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम,1925 के तहत संपत्ति पाने का अधिकार है और जो इस्लाम धर्म का पालन करते है या उसके अनुयायी है उन सबको शरीयत - मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत संपत्ति प्रदान की जाती जाती है.