बेटी को अपने माता-पिता की संपत्ति में अधिकार, यह विषय हमेशा से ही चर्चा का विषय का रहा है. कभी महिलाओं को पुरूषों के बराबर भागीदारी की बात तो कभी महिलाओं को पुरूषों के समान ही अधिकार मिले. हालांकि, हिंदू अधिनियम, 2005 में बेटियों को बेटे के समान हिस्सेदारी का नियम है, लेकिन आजादी के समय इसे लेकर क्या प्रावधान थी, क्या उस समय बेटियों को बेटे के समान भागीदारी नहीं दी जा रही थी. ऐसे ही एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी होने को लेकर अहम टिप्पणी की है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) केलागू होने से पहले हुई है तो ऐसे में बेटी का उस संपत्ति पर किसी तरह अधिकार नहीं होगा. बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला 1987 में दो सौतेली बहनों द्वारा अपने पिता की संपत्ति में अधिकार को लेकर दायर की गई दूसरी अपील को खारिज करते हुए किया.
बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस अतुल चांदुरकर और जस्टिस जितेन्द्र जैन की डिवीजन बेंच ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से जुड़े सवाल पर अहम टिप्पणी की है. अदालत से 28 फरवरी 2007 को एकल जज की पीठ ने सवाल किया था कि क्या बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार है, अगर पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होने से पहले हुई हो.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने सवाल का जवाब में उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937 को आधार बनाया, जो परिवार की महिलाओं के अपने पति या पिता की सपत्ति में अधिकारों से संबंधित है, का हवाला दिया.
बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 1937 के अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार एक पिता अपनी बेटी का पालन-पोषण कर उसकी शादी कर देता था, जिसके बाद वो ससुराल चली जाती थी, सलिए, 1937 के अधिनियम के समय में बेटी को कभी भी परिवार का हिस्सा नहीं माना गया. यह ध्यान देना आवश्यक है कि ये बात आजादी पूर्व की है, उस समय महिलाओं का अपने पति की संपत्ति में अधिकार होता था. इसलिए उस दौर में महिला को पति की संपत्ति में से ही हिस्सा दिया जाता था. यानि कि बेटियों का असली घर ससुराल ही होता था, साथ ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 लागू होने से पहले बेटियों को संपत्ति में बेटी को किसी भी उत्तराधिकार अधिकार का दावा करने से बाहर रखा गया था.
बता दें कि ये 1987 का ये मामला दो सगी सौतेली बहनों के बीच है. पहली बेटी ने संपत्ति में अधिकार को लेकर याचिका दायर की थी, वहीं दूसरी पत्नी के बेटी इस मामले में प्रतिवादी थी. बता दें कि पति की मृत्यु होने के बाद उसकी संपत्ति उसकी पत्नी को मिली, उससे उसकी इकलौती बेटी को. इस पर पहली पत्नी की बेटी ने संपत्ति में अपनी दावे की मांग की.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937 के अनुसार, पति की मृत्यु पर पत्नी का ही संपत्ति में अधिकार होता है. इसलिए पहली पत्नी की बेटी उसकी संपत्ति में अपना दावा नहीं कर सकती है.