हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के पुरुष और महिला सदस्यों के बीच उत्तराधिकार यानि विरासत के अधिकारों में समानता को लागू करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धाराओं की समीक्षा और उसे एसटी समुदायों पर लागू करने को कहा है, जिससे अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को समान अधिकार मिल सके. अब तक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA, 1956) जनजातीय महिलाओं पर नहीं लागू होता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के 'सवरा जनजाति' की एक महिला को संपत्ति अधिकार देने के फैसले के खिलाफ एक अपील सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार को ये निर्देश दिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जनजाति की महिला को संपत्ति में हिस्सा देने का फैसले को बरकरार रखा है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने ST समुदायों की महिलाओं को समान अधिकारों से वंचित करना अन्यायपूर्ण बताया है. अदालत ने कहा कि जब गैर-जनजातीय समुदाय की एक बेटी को ऐसे अधिकार का हक है, तो ST समुदाय की बेटी को यह अधिकार क्यों नहीं दिया जा सकता. शीर्ष अदालत ने केंद्रीय प्रांत कानून अधिनियम, 1875 पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा, जो जनजातीय उत्तराधिकार कानूनों में अंतराल को कम करने की अनुमति देता है.
अपीलकर्ताओं ने तर्क किया कि प्रतिवादी के पिता (मार्दन) की मृत्यु 1951 में हुई थी, जो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने से पहले थी. सिविल कोर्ट और पहले अपीलीय कोर्ट ने वर्तमान अपीलकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया, यह मानते हुए कि दोनों पक्ष हिंदू धर्म का पालन करते थे. हालांकि, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने न्याय, समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांतों को लागू करते हुए मार्दन की बेटियों को उत्तराधिकार का लाभ देते हुए संपत्ति में उसके हिस्से को सुनिश्चित की है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार, यह कानून ST समुदायों पर लागू नहीं होगी जब तक कि केंद्रीय सरकार आधिकारिक गजट में नोटिफिकेशन द्वारा निर्देश जारी नहीं करती. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से इसी धारा को संशोधित करने को कहा है.