वायनाड भूस्खलन के कारण हुए जानमाल के नुकसान पर एक भावुक भाषण में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने शनिवार को पर्यावरण को क्षति पहुंकाकर विकास करने की जगह सतत विकास की आवश्यकता पर जोर दिया.
कुमारकोम में कॉमनवेल्थ लीगल एजुकेशन एसोसिएशन (CLEA) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 'कानून और प्रौद्योगिकी: सतत परिवहन, पर्यटन और तकनीकी नवाचार' में बोलते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा,
"मानव लालच को उस सीमा को पार नहीं करना चाहिए कि हम भविष्य की पीढ़ियों की परवाह करना बंद कर दें."
उन्होंने कहा कि केरल के पर्यावरण को देखते हुए, सतत परिवहन, पर्यटन और तकनीकी नवाचारों पर इस सम्मेलन का आयोजन महत्वपूर्ण है.
न्यायमूर्ति गवई ने कहा,
"हमने देखा है कि विकास और पर्यावरण चिंताओं के बीच संघर्ष के कारण, पिछले दशक में, हमने कई त्रासदियों का सामना किया है."
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि प्रगति के लिए विकास जरूरी है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने के लिए तीनों अंगों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करना होगा.
जस्टिस ने कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रगति के लिए विकास जरूरी है, लेकिन यह पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता. मनुष्य को हमेशा लालची कहा जाता है, लेकिन लालच उस सीमा से आगे नहीं बढ़ना चाहिए, जहां आने वाली पीढ़ियों की चिंता न हो."
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में सतत विकास की अवधारणा महत्वपूर्ण रही है, साथ ही नागरिकों का यह भी मौलिक कर्तव्य है कि वे प्रकृति की रक्षा करें.
न्यायमूर्ति गवई ने ग्रीन बेंच की अध्यक्षता करते हुए अपने अनुभव को भी याद करते हुए कहा:
“एक तरफ, हमारे पास सरकारों के सामने बिजली के लिए बांध बनाने की मांग की अनुमति है, वहीं दूसरी तरफ, हमारे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पर्यावरणीय चिंताएं हैं.”
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को दुनिया भर में देखा जा रहा है और प्रतिकूल प्रभाव उन पहलुओं में से एक है, जिन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.