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Electoral Bond मामले का फैसला 'पर्याप्त' नहीं लगा, SIT जांच होनी चाहिए थी: रिटायर सुप्रीम कोर्ट जज ने कहा

रिटायर जस्टिस लोकुर ने इलेक्टोरल बॉण्ड मामले में पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा कि सभी जानकारी को सार्वजनिक करना आवश्यक है. उन्होंने यह भी पूछा कि उन व्यक्तियों के पास हजारों करोड़ रुपये कहां से आए, जिन्होंने इतनी बड़ी धनराशि का दान दिया.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर

Written by Satyam Kumar |Published : May 23, 2025 11:44 AM IST

सुप्रीम कोर्ट रिटायर जस्टिस मदन बी लोकुर ने इलेक्टोरल बॉण्ड फैसले को लेकर अहम टिप्पणी की है. रिटायर जस्टिस लोकुर ने कहा कि जिस आदेश के तहत चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित किया गया, वह 'पर्याप्त नहीं' था. उन्होंने कहा किनिर्णय उस स्तर तक नहीं गया, जिस स्तर तक जाना चाहिए था. उन्होंने इसे असंवैधानिक घोषित किया, लेकिन मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए. जस्टिस लोकुर की ये टिप्पणी पत्रकार पूनम अग्रवाल की नई पुस्तक 'इंडिया इंक्ड' पर चर्चा के दौरान आई.

जस्टिस मदन बी लोकुर, हाल ही में संयुक्त राष्ट्र आंतरिक न्याय परिषद (UN Internal Justice Council) के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. वे इस पद पर 2028 तक रहेंगे. रिटायर जस्टिस लोकुर ने इलेक्टोरल बॉण्ड मामले में पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा कि सभी जानकारी को सार्वजनिक करना आवश्यक है. उन्होंने यह भी पूछा कि उन व्यक्तियों के पास हजारों करोड़ रुपये कहां से आए, जिन्होंने इतनी बड़ी धनराशि का दान दिया. लोकुर ने सुझाव दिया कि शायद एक SIT का गठन किया जाना चाहिए था ताकि यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में क्या हो रहा है.

पुस्तक पर चर्चा करने के दौरान,  कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि यह योजना विपक्ष के साथ अन्यायपूर्ण थी क्योंकि दानदाताओं की पहचान विपक्ष को नहीं पता थी, जबकि सरकार को पता था. इस चर्चा में चुनाव आयोग के पूर्व आयुक्त अशोक लवासा ने भी भाग लिया. वहीं, डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के संस्थापक जगदीप चोकर ने भी कहा कि इस योजना ने चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने का दावा किया, लेकिन डोनर्स की पहचान को गुप्त रखा.

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बताते चलें कि 'इंडिया इंक्ड' पुस्तक में भारत में चुनावों के संचालन की प्रक्रिया का गहराई से अध्ययन किया गया है. पुस्तक में चुनावी बांड योजना का भी उल्लेख किया गया है, जिसे 2018 में राजनीतिक फंडिंग योजना के रूप में पेश किया गया था. इसे 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया.