नई दिल्ली: क्या आपने भी अपना मकान रेंट पर दे रखा है और उस रेंट से हो रही आमदनी का आधा से ज्यादा हिस्सा टैक्स में जा रहा है. तो यहां आपको इस परेशानी से छुटकारा पाने से सम्बंधित ऐसा तरीका बताएंगे जिसका इस्तेमाल करके आप भी टैक्स भरने से छुटकारा पा सकते हैं सकेंगे.
इससे पहले आपको बता दे कि Income Tax Act क्या होता है. आयकर अधिनियम (Income Tax Act,1961), आयकर लगाने, एकत्र करने और वसूल करने, प्रशासन करने, के लिए एक अधिनियम है जो 1 अप्रैल 1962 से लागू है. इस अधिनियम में 298 खंड और 14 अनुसूचियां हैं. यह अधिनियम करदाता की कर योग्य आय, कर देयता, अपील, दंड और अभियोजन को निर्धारित करने में मदद करता है. इसी अधिनियम के तहत रेंट की इनकम में से टैक्स लिया जाता है.
रेंटल इनकम वह अमाउंट होता है जो प्रॉपर्टी को किराए पर देने के बदले किराएदार द्वारा मालिक को दिया जाता है. इसी इनकम पर जो टैक्स देना पड़ता है उसे Tax on Rental Income कहा यहां है.
यह इस कॉन्सेप्ट पर काम करता है कि हर व्यक्ति को अपने किसी भी कमाई पर टैक्स देना पड़ता है. रेंटल इनकम यानी किराये पर दिए गए मकान, प्रॉपर्टी या जमीन से हुई कमाई टैक्सेबल इनकम के दायरे में आती है, जिसका Income Tax Act, 1961 की धारा (Section) 24 के 'Income from House Property' में प्रावधान किया गया है.
अगर आप रेंट के माध्यम से पैसा कमाना चाहते हैं और साथ ही आप चाहते हैं कि आपको उस पर लगने वाले टैक्स में छूट प्राप्त हो तो इसके लिए आपको टैक्स प्लानिंग करनी होगी. अगर आप भी किराये से इनकम कमाते हैं तो जान लें कि नियमों के दायरे में रहकर कैसे कम टैक्स दे सकते हैं. आपको सेक्शन 24 के तहत कई टैक्स इंसेंटिव मिलते हैं.
आपको बता दें कि किराए से होने वाली कमाई पर टैक्स (Tax on Rental Income) का कैलकुलेशन (Tax Calculation) ग्रॉस एनुअल वैल्यू (GAV) पर म्युनिसिपल टैक्स, स्टैंडर्ड डिडक्शन और होम लोन के ब्याज, अगर कोई हो, को घटाने के बाद किया जाता है.
ध्यान रखें कि आपकी रेंटल इनकम वही गिनी जाएगी जो किरायेदार से आपको मिल चुकी हो. मान लीजिए किसी कारण से किरायेदार ने कुछ महीनों का किराया नहीं चुकाया है या फिर किसी कारण से उसने कमरा खाली कर दिया है, तो उस अवधि में टैक्स नहीं भरना होगा, क्योंकि आपको कोई किराया मिला ही नहीं है.
अगर आपकी किराये से टैक्सेबल इनकम ढाई लाख (New Tax Regime में 3 लाख) से कम है तो आपको टैक्स नहीं भरना है.
इसे समझने के लिए आपको ये समझना होगा कि स्टैंडर्ड डिडक्शन होता क्या है. स्टैंडर्ड डिडक्शन उस कटौती को कहा जाता है, जो कि टैक्स देने वाले की आय से कुछ पैसे काट कर अलग करके, बची हुई धनराशि पर टैक्स की गणना की जाती है. इसे ऐसे समझें कि अगर आपको सालाना मकान के किराये से 8 लाख इनकम हो रहा है तो इसमें आपको 50,000 रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ दिया जाएगा.
इस तरह से आपकी आय की गणना आठ लाख के बजाए 7,50,000 की जाएगी. इसी में से टैक्स आपसे लिया जाएगा और आप मकान के किराये पर स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा उठाकर अपनी टैक्सेबल इनकम घटा सकते हैं.
अगर आपने होम लोन लेकर कोई घर खरीदा है और फिर उसे किराये पर किसी को दे दिया है तो आपको धारा 24 (b) के तहत उसपर भरे गए इंटरेस्ट पर 2 लाख तक की टैक्स छूट मिलती है. अगर आप धारा 80EEA के तहत भी आते हैं तो आप अलग से 1.5 लाख का टैक्स बेनेफिट पा सकते हैं.
कई बार ऐसा होता है कि लोग साथ मिलकर कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो ऐसे में आपकी टैक्स लायबिलिटी घटेगी. को-ओनरशिप में दोनों ही ओनर अपने ओनरशिप रेशियो के हिसाब से धारा 24 और धारा 80EEA के तहत टैक्स बेनिफिट क्लेम कर सकते हैं. हां, लेकिन दोनों को-ओनर्स का कुल डिडक्शन उस फाइनेंशियल ईयर में होम लोन पर भरे गए इंटरेस्ट से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
आपने किसी को मकान किराए पर दे रखा है और सभी तरह के म्युनिसिपल टैक्स आप खुद भर रहे हैं ना कि आपका किरायेदार तो आपको टैक्स लायबिलिटी घटाने का विकल्प मिलेगा.
अगर आप अपने किरायेदार से मेंटेनेंस चार्ज जोड़कर किराया लेते हैं, तो ये भी आपकी इनकम में गिना जाता है, ऐसे में आप किरायेदार के एग्रीमेंट में ये प्रावधान कर सकते हैं कि वो ये चार्ज सीधा रेजिडेंशियल असोसिएशन को दे, जिससे आपकी इनकम कम गिनी जाएगी और आपको ज्यादा टैक्स नहीं भरना होगा.