सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को संशोधित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के आसपास जमीन खरीदने के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति दी है. शीर्ष अदालत ने यह शर्त रखी कि खरीदी गई जमीन देवता या ट्रस्ट के नाम पर हो. वहीं, इन मामलों की देखरेख के लिए मथुरा जिला कोर्ट को एक रिसीवर नियुक्त करने के निर्देश दिए.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की. पीठ ने कहा कि मुकदमेबाजी को लंबा खींचना मंदिरों में विवाद पैदा कर रहा है और इसमें वकीलों और जिला प्रशासन की अप्रत्यक्ष भागीदारी हो रही है, जो हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के हित में नहीं है
आज सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च, 2023 को सिविल जज मथुरा द्वारा नियुक्त सात सदस्यीय समिति के गठन को कानून के किसी भी सिद्धांत पर आधारित नहीं मानते हुए इसे रद्द करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही निचली अदालत से इस मामले में शीघ्र सुनवाई करने और रिसीवर की नियुक्ति में देरी किए बिना निर्णय लेने का अनुरोध किया है. मथुरा जिला कोर्ट ने आठ मंदिरों को रिसीवर के अधीन रखा है जिनमें राधा वल्लभ मंदिर, वृंदावन; दौजी महाराज मंदिर, बलदेव; नंदकिला नंद भवन मंदिर, गोकुल; मुखरबिंद, गोकुल; डाँगहाटी, गोकुल; अनंत श्री विभूषित, वृंदावन और मंदिर श्री लाडली जी महाराज, बरसाना शामिल हैं.
रिसीवर नियुक्त करने के पहलू पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई ऐतिहासिक मंदिरों में दशकों से रिसीवर नियुक्त हैं, जो अस्थायी उपाय के तौर पर शुरू हुआ था. इसमें चिंता की बात यह है कि रिसीवर नियुक्त करते समय अदालतें यह ध्यान नहीं रखतीं कि मथुरा और वृंदावन जैसे वैष्णव सम्प्रदाय के पवित्र स्थानों के लिए वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित व्यक्तियों को ही रिसीवर नियुक्त किया जाए.
उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के चारों ओर 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने और इसे विकसित करने की योजना प्रस्तुत की, जिसमें पार्किंग स्थल, श्रद्धालुओं के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा चेक पोस्ट और अन्य सुविधाओं का निर्माण शामिल है. हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 08.11.2023 को इस योजना का अवलोकन करते हुए कहा कि यह विकास परियोजना श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है. हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को इस विकास परियोजना के लिए 500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की आवश्यकता होगी. हालांकि, सरकार ने प्रस्तावित भूमि खरीदने के लिए मंदिर के फंड का उपयोग करने की योजना बनाई थी. इस प्रस्ताव से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए ने अस्वीकार कर दिया. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को संशोधित कर उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर की राशि यूज करने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकार इन फिक्स्ड डिपॉजिट में रखे गए धन का उपयोग भूमि अधिग्रहण के लिए कर सकती है.