सुप्रीम कोर्ट से जय कॉरपोरेशन लिमिटेड और उसके डायरेक्टर आनंद जैन को राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमे हाई कोर्ट ने इनके खिलाफ 2400 करोड़ की कथित धोखाधड़ी के मामले में SIT जांच का आदेश दिया था. जय कॉर्प के निदेशक आनंद जैन पर आरोप है कि उन्होंने रियल एस्टेट परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेशकों को धोखा दिया है.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश से साफ है कि हाई कोर्ट ने इस मामले में लगे गंभीर आरोपों के मद्देनजर जांच के लिए SIT गठन करने का आदेश दिया है. इस मामले में जिस तरह के तथ्य है, उनको देखते हुए हाई कोर्ट कम से कम इतना तो कर ही सकता था. अब सीबीआई, मुंबई के जोनल डायरेक्टर को हाई कोर्ट की जारी निर्देशों के मुताबिक जांच करनी है।इसलिए इस स्टेज पर हमारे दख़ल की ज़रूरत नहीं है.
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पास करने के लिए हाई कोर्ट की सराहना भी की. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि हम इस आदेश को पारित करने के लिए हाई कोर्ट के साहस की सराहना करते हैं। किसी भी हाई कोर्ट से ऐसी ही अपेक्षा की जाती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर इस मामले में कोई FIR दर्ज होती है तो जय कॉर्प और उससे जुड़े लोग FIR रद्द करने की मांग के लिए उचित क़ानूनी फोरम का रुख कर सकते है.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जनवरी में दिए आदेश में सीबीआई के जोनल डायरेक्टर को आनंद जैन से जुड़ी कथित धोखाधड़ी की शिकायतों की गहन जांच के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने यह आदेश व्यवसायी शोएब रिची सेक्वेरा की याचिका पर सुनवाई करने के बाद दिया था। शोएब ने अपमी याचिका में जैन और उनकी कंपनी जय कॉर्प के खिलाफ व्यक्तिगत लाभ के लिए सार्वजनिक निधियों का दुरुपयोग करने ,निवेशकों को धोखा देना, मनी लॉन्ड्रिंग करने के लिए सहायक कंपनियों को एडवांस देने जैसे आरोप लगाए थे। इन आरोपों के तहत इनके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत आरोप बनता था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने इसको लेकर मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में 22 दिसंबर 2021 और3 अप्रैल 2023 को शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन मुंबई पुलिस ने निष्पक्ष जांच नहीं की। इसलिए उसे कोर्ट का रुख करना पड़ा है
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हाई कोर्ट के फैसले से साफ है कि वो इस मामले में आर्थिक अपराध शाखा की जांच से संतुष्ट नहीं है।हाई कोर्ट ने जांच के तरीके को लेकर लेकर अपनी निराशा और नाराजगी जाहिर की है।याचिकाकर्ता इस मामले में शुरुआती जांच चाहता था, लेकिन EOW ने क़ानून सम्मत तरीके से वो जांच नहीं की है।इसलिए हाई कोर्ट ने जांच के लिए SIT गठन का आदेश दिया है।हाई कोर्ट अपने आदेश में साफ कर चुका है कि SIT कोर्ट की किसी टिप्पणी से प्रभावित हुए बगैर हरसम्भव एंगल से जांच करेगी।इसलिए हमें इस आदेश में दखल देने का कोई औचित्य नज़र नहीं आता
इस मामले में सुनवाई के दौरान जय कॉर्प कंपनी की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और अमित देसाई पेश हुए। अमित देसाई ने दलील दी कि हाई कोर्ट का आदेश ग़लत है। हाई कोर्ट के समक्ष मूल याचिका में केवल प्रारंभिक जांच का आग्रह किया गया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसका दायरा बढ़ाकर पूर्ण जांच का आदेश दिया। उन्होंने दलील दी कि यह याचिका कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग थी और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में शिकायतकर्ता की मंशा को भी देखना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया।