सुप्रीम कोर्ट ने बिहार SIR के मामले में अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहचान पत्र के तौर पर चुनाव आयोग आधार कार्ड को 12वें डॉक्यूमेंट के तौर पर शामिल करने को कहा है. इससे पहले चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों को मान्यता दी थी. हलांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह छूट दी है कि संदेह होने पर आधार कार्ड की जांच करने के आदेश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए मतदाता द्वारा पेश किये गए आधार नंबर की वास्तविकता का पता लगा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल SIR की प्रकिया में आधार कार्ड की स्वीकार्यता और स्टेटस का है. इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं कि आधार एक्ट के मुताबिक आधार नागरिकता साबित करने वाला सबूत नहीं है, इसलिए इसे नागरिकता के सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. हालांकि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत आधार लोगों की पहचान साबित करने वाले दस्तावेजों ने शामिल है. लिहाजा हम चुनाव आयोग को निर्देश देते है कि वोटर लिस्ट में नाम शामिल करवाने/ कटवाने के लिए आधार को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करें. इस मकसद के लिए आधार को 12वां दस्तावेज माना जाएगा. हालांकि ऑथोरिटी को इस बात अधिकार होगा कि वो बाकी दस्तावेजों की तरह , और ज़्यादा सबूत/ डॉक्यूमेंट मांगकर आधार की सत्यता की जांच कर सकती है( मतलब इस बात की जांच कि आधार सही है या फ़र्जी).
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4) पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए सूचीबद्ध दस्तावेजों में से एक है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से यह अपेक्षा कर सकता है कि ऐसा व्यक्ति आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया आधार नंबर प्रस्तुत करे.’’
बताते चलें कि चुनाव आयोग इसे लेकर 9 सितंबर को निर्देश जारी करेगा. वहीं, मामले की अगली सुनवाई15 सितंबर को होगी. चुनाव आयोग फाइनल वोटर लिस्ट 30 सितंबर को जारी करेगी.