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क्या धमकियां मिलने से राज्य में रिलीज नहीं की जाएगी फिल्म? कर्नाटक में कमल हासन की 'थग लाइफ' का मामला Supreme Court पहुंचा, राज्य सरकार से जबाव तलब

कमल हासन की थग लाइफ को रिलीज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया कि फिल्म स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध कथित तौर पर राज्य सरकार के मौखिक निर्देशों और पुलिस हस्तक्षेप के कारण लगाया गया है.

Thug Life, Supreme Court

Written by Satyam Kumar |Updated : June 15, 2025 1:43 PM IST

Kamal Hasan's Thug Life:  कमल हासन की थग लाइफ की स्क्रीनिंग डेट 5 जून थी. फिल्म प्रचार के दौरान कमल हासन की टिप्पणी से कर्नाटक में इस फिल्म की स्क्रीनिंग टल गई. कर्नाटक हाई कोर्ट में भी यह मामला लंबित है, इस बीच कर्नाटक में ठग लाइफ की रिलीज को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से जवाब मांगा है.

जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने हासन-अभिनीत और मणिरत्नम द्वारा निर्देशित तमिल फीचर फिल्म ‘ठग लाइफ’ की स्क्रीनिंग पर कर्नाटक में प्रतिबंध को चुनौती देने वाली एम. महेश रेड्डी की याचिका पर नोटिस जारी किया. अब अगली सुनवाई मंगलवार को होगी. रेड्डी ने अधिवक्ता ए वेलन के जरिये दायर अपनी याचिका में दलील दी कि फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा प्रमाण पत्र दिए जाने के बावजूद, राज्य सरकार ने मौखिक निर्देशों और पुलिस हस्तक्षेप के माध्यम से कथित तौर पर बिना किसी आधिकारिक निषेधाज्ञा या प्राथमिकी दर्ज किए सिनेमाघरों में इसके प्रदर्शन को रोका है.

याचिकाकर्ता वेलन ने दावा किया कि राज्य सरकार द्वारा की गई ऐसी कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंवैधानिक प्रतिबंध है. पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि सीबीएफसी द्वारा प्रमाणित तमिल फीचर फिल्म ‘ठग लाइफ’ को कर्नाटक राज्य के सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं है. हिंसा की धमकी के तहत तथाकथित प्रतिबंध किसी कानूनी प्रक्रिया से नहीं, बल्कि सिनेमा हॉल के खिलाफ आगजनी की स्पष्ट धमकियों और भाषाई अल्पसंख्यकों को लक्षित करके बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा भड़काने सहित आतंक के एक जानबूझकर अभियान से उपजा है. याचिका की प्रति राज्य सरकार के स्थायी वकील को सौंपे जाने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि मामले में दिखाई गई तात्कालिकता और संबंधित मुद्दे पर विचार करते हुए प्रतिवादियों को 17 जून, 2025 तक जबाव देने का निर्देश दिया जाता है.

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सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि धमकी का यह दौर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(ए) और किसी भी पेशे को अपनाने के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 19(1)(जी) का सीधा, खुला उल्लंघन है. इससे भी गंभीर बात यह है कि यह राज्य के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और सार्वजनिक व्यवस्था पर एक सुनियोजित हमला है.

(खबर इनपुट पर आधारित है)