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आरोपी की सहमति के बिना नार्को-टेस्ट करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन', इसकी रिपोर्ट सबूत के तौर पर नहीं होगी स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना सहमति के नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता.

Supreme Court, Narco Test

Written by Satyam Kumar |Published : June 10, 2025 10:31 AM IST

आपने कभी सुना होगा कि लोग कभी-कभी आरोपियों के नार्को टेस्ट कराने की मांग करते हैं. लोग यह मानते हैं कि नार्को टेस्ट कराने से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. लेकिन क्या महज आरोप लगने मात्र से किसी व्यक्ति को ट्रुथ सीरम (नार्कों टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम दिया जाता है, जो उसे स्वभाविक रूप से बोलने में मदद करता है) देकर उससे सच उगलवाया जा सकता है, क्या बिना उसकी इजाजत के उस पर नार्को टेस्ट किया जा सकता है. आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर क्या फैसला सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी आरोपी पर जबरन नार्को-विश्लेषण परीक्षण कराना कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है और ऐसा परीक्षण उसके मौलिक अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाता है.जस्टिस संजय करोल और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा कि आधुनिक जांच तकनीकों की आवश्यकता सच हो सकती है, लेकिन ऐसी जांच तकनीकों को अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत प्राप्त संवैधानिक गारंटी की कीमत पर नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि किसी भी परिस्थिति में कानून के तहत अनैच्छिक या जबरन नार्को-विश्लेषण परीक्षण की अनुमति नहीं है. नतीजतन, इस तरह के अनैच्छिक परीक्षण की रिपोर्ट या बाद में मिली ऐसी जानकारी भी आपराधिक या अन्य कार्यवाही में सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है.

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शीर्ष अदालत ने यह फैसला पटना हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए सुनाया, जिसमें आरोपियों की सहमति के बिना उन पर नार्को-विश्लेषण परीक्षण की अनुमति दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने पति और उसके परिवार पर लगे दहेज हत्या के आरोपों से संबंधित मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों पर नार्को-विश्लेषण परीक्षण कराने के जांच अधिकारी के प्रस्ताव को स्वीकार करने में गलती की है.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)