सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है. नए चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने तीन दिनों तक इस मामले की सुनवाई की. वक्फ मामले में मुख्यत: तीन पहलुओं को चुनौती दी गई है, अदालतों द्वारा घोषित, उपयोग द्वारा वक्फ, या दस्तावेज़ द्वारा वक्फ संपत्तियों को वक्फ से हटाने की शक्ति; राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना; और एक वक्फ संपत्ति को वक्फ के रूप में नहीं मानने का प्रावधान जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करता है कि क्या संपत्ति सरकारी भूमि है. आइये जानते हैं कि सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार और याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा...
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ केवल एक दान है, और हर धर्म में दान का महत्व होता है.साथ ही भले ही वक्फ एक इस्लाम की अवधारणा हो जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए समर्पित किया जाता है, लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है. सॉलिसिटर जनरल ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल करने के पक्ष में तर्क दिया. उन्होंने कहा कि यह विविधता के लिए आवश्यक है और बोर्ड के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं का ध्यान रखने के लिए है. उन्होंने कहा कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों का उद्देश्य वक्फ के दुरुपयोग और गलत प्रबंधन को रोकना है. सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि यह संशोधन सभी हितधारकों के साथ बातचीत के बाद लाए गए थे.
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि वक्फ-बाय-यूजर के नाम पर देश में कई मामलों में सरकारी संपत्तियों का दावा किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि वक्फ-बाय-यूजर की समाप्ति केवल भविष्य के लिए है और यदि वक्फ पंजीकृत है, तो मौजूदा वक्फ प्रभावित नहीं होंगे. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अब एक झूठी नैरेटीव बनाई जा रही है कि वक्फ को छीन लिया जा रहा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ देश को गुमराह करने का प्रयास है. वक्फ-बाय-यूजर को कुछ अपवादों के साथ भविष्य के लिए अनुमति नहीं दी गई है. उन्होंने यह भी कहा कि जब कोई संपत्ति विवाद में आती है, तो केवल वक्फ का चरित्र हटाया जाता है, न कि संपत्ति के अधिकार या अन्य अधिकार. यह महत्वपूर्ण है कि संपत्ति की प्रबंधन प्रक्रिया कानून के अनुसार हो.
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर आप कहते हैं कि वक्फ शून्य है तो यह अब वक्फ नहीं है. मेरा कहना है कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है. कोई न्यायिक प्रक्रिया नहीं है और फिर आप वक्फ को अदालत में जाने और कलेक्टर के फैसले को चुनौती देने के लिए मजबूर करते हैं और जब तक फैसला आता है, तब तक संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती है.
सर्वोच्च अदालत ने आगे कहा कि मामला लंबित रहने के दौरान संपत्ति की स्थिति 3(सी) के तहत बदल जाती है और वक्फ का कब्जा खत्म हो जाता है. इस पर सिब्बल ने कहा कि हां, जांच शुरू होने से पहले यह वक्फ नहीं रह जाती. नए कानून में व्यवस्था दी गई है कि वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल में इस्लाम धर्म का पालन करना होगा. हमें किसी को क्यों बताना चाहिए कि मैं कब से इस्लाम मानता हूं. इसके जांचने का तरीका क्या होगा? सिब्बल ने कहा कि अब वक्फ बाय यूजर को हटा दिया गया है। इसे कभी नहीं हटाया जा सकता. यह ईश्वर को समर्पित है। यह कभी खत्म नहीं हो सकता. अब यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि केवल वही वक्फ बाय यूजर बचेगा जो रजिस्टर्ड है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद में वक्फ संपत्तियों से जुड़े बहुत सारे विवाद हैं. इस पर सिब्बल ने कहा कि विवाद पर सरकारी अधिकारी इसका फैसला करेगा और अपने मामले में खुद ही जज होगा. कानून की यह धारा अधिकारों का हनन करती है, यह अन्यायपूर्ण और मनमाना है और अधिकारों का उल्लंघन है. एक अन्य प्रावधान लाया गया है कि वक्फ करने वाले का नाम और पता, वक्फ करने का तरीका और वक्फ की तारीख मांगी गई है. लोगों के पास यह कैसे होगा? 200 साल पहले बनाए गए वक्फ मौजूद हैं और अगर वे यह नहीं देते हैं तो मुतवल्ली (ट्रस्टी या देखभाल करने वाला) को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ेगा.