अगर आप कभी डॉक्टर से दिखाने गए होंगे, तो उस अस्पताल या डॉक्टर के चैम्बर के बाहर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव दिखाई पड़ेगें, जो बड़ी-बड़ी फॉर्मा कंपनियों से जुड़े होते हैं और डॉक्टर से आपनी दवाई ही प्रेस्क्राइब करने की गुजारिश करते हैं. अब अगर दस बिग कंपनियां और सबने सेम दवाएं बनाई है तो डॉक्टर किसी एक फॉर्मा कंपनी की दवाई ही मरीजों को लिखेंगे, यह कैसे तय होगा. यह कैसे तय होगा और अस्पतालों में बड़े पैमाने पर विकसित इस प्रैक्टिस पर कैसे रोक लगे और कंपनियों की दवा खरीदने से मरीजों की जेब पर अत्यधिक बोझ ना पड़े. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेनरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देकर दवा कंपनियों के अनैतिक व्यवहार पर रोक लगाई जा सकती है. यह एक संभावित समाधान है जिससे डॉक्टरों पर दवा कंपनियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और मरीजों को अधिक किफायती इलाज मिल सकता है.
याचिकाकर्ता फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMRAI), जन स्वास्थ्य अभियान अन्य संगठन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि दवा कंपनियां व्यापार बढ़ाने और अत्यधिक दवाएं लिखवाने के लिए डॉक्टरों को रिश्वत देती हैं. इस याचिका में ये भी दावा किया गया कि दवा कंपनियां महंगी दवाएं लिखने के लिए भी डॉक्टरों को रिश्वत दे रही हैं. कुल मिलाकर इस याचिका में दवा मार्केट में चल रही अनइथिकल ट्रैड प्रैक्टिस पर रोक लगाने की मांग की गई.
इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ के सामने लाया गया.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ओरल रिमार्क देते हुए कहा कि यदि डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवा लिखने का वैधानिक आदेश हो, तो दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को कथित रूप से रिश्वत देने और अत्यधिक या बेवजह की दवाएं लिखने के मुद्दे का समाधान हो सकता है.
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि वर्तमान में, डॉक्टरों के लिए केवल जेनेरिक दवाएं लिखना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है, हालांकि एक स्वैच्छिक संहिता मौजूद है. सूचित किया गया कि जेनरिक दवा लिखने का आदेश राजस्थान में एक कार्यकारी निर्देश के माध्यम से अनिवार्य किया गया है
अब अदालत इस मामले को समर वेकेशन के बाद 24 जुलाई के दिन तय की है.