Advertisement

जनहित याचिका में दावा, Col Sofiya Qureshi का डीपफेक वीडियो चलाया जा रहा, फिर Supreme Court ने हस्तक्षेप करने से क्यों किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल सोफिया कुरैशी से जुड़े डीपफेक वीडियो मामले में जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट पहले से ही इसी तरह के मुद्दों पर सुनवाई कर रहा है, आप भी राहत के लिए वहीं जाएं.

Col Sofiya Qureshi, Supreme Court

Written by Satyam Kumar |Published : May 16, 2025 1:13 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर विचार करने से शुक्रवार को इनकार दिया जिसमें आरोप लगाया गया है कि कर्नल सोफिया कुरैशी की एआई से बनाई गईं डीपफेक वीडियो प्रसारित की जा रही हैं. जनहित याचिका में ऐसे ऑनलाइन कंटेंट से निपटने के लिए एक आदर्श कानून का मसौदा तैयार करने को लेकर न्यायालय की निगरानी में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से इंकार किया है. आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों किया...

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने याचिकाकर्ता नरेन्द्र कुमार गोस्वामी की इस बात से सहमति जताई कि यह एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन साथ ही कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक पीठ ऐसे ही मुद्दों पर गौर कर रही है।

बेंच ने कहा,

Also Read

More News

“हम यह नहीं कह रहे हैं कि यह कोई गंभीर मुद्दा नहीं है, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट पिछले कुछ साल से इस मामले की सुनवाई कर रहा है. अगर हम इस याचिका पर विचार करेंगे तो हाई कोर्ट लंबित मामले की सुनवाई बंद कर देगा और उसकी वर्षों की सारी मेहनत बेकार हो जाएगी. उचित होगा कि आप दिल्ल हाई कोर्ट जाएं.”

याचिकाकर्ता गोस्वामी ने कहा कि वह ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी देने वाली टीम का हिस्सा रहीं कुरैशी के डीपफेक वीडियो प्रसारित किए जाने से परेशान हैं. उन्होंने कहा कि कर्नल कुरैशी के कई फर्जी वीडियो ऑनलाइन प्रसारित किये जा रहे हैं.

पीठ ने कहा कि ये साइबर अपराधी इतनी तेजी से काम करते हैं कि याचिकाकर्ता के अदालत कक्ष से बाहर जाने से पहले ही नया वीडियो आ जाएगा. शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट को निर्देश देते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता से बात करे और इस मुद्दे पर उसके सुझाव सुने. शीर्ष अदालत ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हम इस याचिका पर विचार करना और समानांतर कार्यवाही शुरू करना आवश्यक नहीं समझते. याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट में हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पक्षकार बनाने और लंबित मामले में सहायता करने की स्वतंत्रता दी जाती है.