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उदयपुर फाइल्स की रिलीज पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से किया इंकार, दिल्ली हाईकोर्ट को केंद्र के फैसले पर विचार करने को लेकर दिया ये निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' पर रोक लगाने वाले हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ फिल्म निर्माताओं की अपील अब निरर्थक हो गई है क्योंकि निर्माताओं ने केंद्र सरकार के उस आदेश को मान लिया है, जिसमें कुछ दृश्यों को हटाने और डिस्क्लेमर बदलने के बाद फिल्म को रिलीज करने की मंजूरी दी गई है.

Udaypur files

Written by Satyam Kumar |Published : July 25, 2025 11:58 PM IST

आज (शुक्रवार को) सुप्रीम कोर्ट ने उदयपुर फाइल्स के रिलीज पर फैसला सुनाने के लिए मामले को दोबारा से दिल्ली हाई कोर्ट के पास भेजा है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशानुसार, दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले पर 28 जुलाई के दिन सुनवाई कर सकती है. सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्म निर्माताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा सुझाए निर्देशों को स्वीकार कर लिया, जिससे इस याचिका का उद्देश्य पूरा हो गया है, अब इस पर आगे सुनवाई करना निरर्थक है. साथ ही फिल्म के रिलीज का विरोध करने वालों पक्षों को सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वतंत्रता दी है वे चाहे तो फिल्म की रिलीज पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को दोबारा से चुनौती दे सकते हैं. आइये जानते हैं सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में क्या-कुछ हुआ...

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे. बागची की पीठ ने कहा कि फिल्म रिलीज पर रोक लगाने वाले हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली फिल्म निर्माताओं की अपील निरर्थक है, क्योंकि उन्होंने केंद्र के 21 जुलाई के आदेश को स्वीकार कर लिया है जिसमें छह जगह दृश्यों को हटाने का सुझाव देने समेत ‘डिस्क्लेमर’ (अस्वीकरण) में संशोधन के साथ रिलीज को मंजूरी दी गई थी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और कन्हैया लाल हत्याकांड के आरोपी मोहम्मद जावेद को केंद्र के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाने का आदेश दिया. एक संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, फिल्म निर्माताओं की ओर से पेश हुए वकील सैयद रिजवान ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये दावा कि फिल्म में एक खास समुदाय को निशाना बनाया गया है और देश के सामाजिक ताने-बाने को खतरा है , यहउनकी कोरी कल्पना के अलावा कुछ नहीं है.

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वकील सैयद रिजवान ने कहा,

‘‘जब ‘कश्मीर फाइल्स’ रिलीज हुई, केरल स्टोरी रिलीज हुई, तब कुछ नहीं हुआ। जब पहलगाम हमला हुआ, जब पुलवामा आतंकी हमला हुआ, तब देश का सामाजिक ताना-बाना प्रभावित नहीं हुआ। हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना कहीं अधिक मजबूत है.’’

पीठ ने रिजवान की दलीलों को विचारोत्तेजक पाते हुए कहा कि वह उचित मामलों में या जब याचिकाकर्ता मामले की जांच के बाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देंगे, तब इन दलीलों पर विचार करेगी.

सिब्बल ने कहा कि केरल स्टोरी और कश्मीर फाइल्स मामलों के दौरान अदालत ने फिल्में नहीं देखी थीं, लेकिन इस मामले में उन्होंने फिल्म देखी है और बता सकते हैं कि एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया गया था.

फिल्म निर्माताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि (सुविधा का संतुलन) उनके पक्ष में है क्योंकि अब केंद्र ने सीबीएफसी प्रमाणन के बाद फिल्म को मंजूरी दे दी है और निर्माता इस फैसले को स्वीकार कर रहे हैं. भाटिया की दलीलों को दर्ज करते हुए शीर्ष अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया.

शीर्ष अदालत ने सिब्बल की इस दलील पर भी गौर किया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर कर केंद्र द्वारा 21 जुलाई को पारित आदेश को चुनौती दी है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फैसले में फिल्म के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और हाई कोर्ट फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने के मुद्दे पर फैसला सुना सकता है. पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और कन्हैया लाल हत्याकांड के आरोपी मोहम्मद जावेद से केंद्र के फैसले को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट जाने को कहा.

बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने मदनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए 10 जुलाई को फिल्म की रिलीज पर तब तक के लिए रोक लगा दी, जब तक केंद्र सरकार इस पर स्थायी प्रतिबंध लगाने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं ले लेती. फिल्म निर्माताओं ने दावा किया कि उन्हें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से प्रमाणपत्र मिला है, जिसमें बोर्ड ने 55 दृश्य काटने का सुझाव दिया है. फिल्म 11 जुलाई को रिलीज होने वाली थी.

उदयपुर के दर्जी कन्हैया लाल की जून 2022 में कथित तौर पर मोहम्मद रियाज और मोहम्मद गौस ने हत्या कर दी थी. हमलावरों ने बाद में एक वीडियो जारी किया था जिसमें दावा किया गया था कि भारतीय जनता पार्टी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर की गई कथित विवादास्पद टिप्पणी के बाद दर्जी कन्हैया लाल शर्मा ने सोशल मीडिया में उनके समर्थन में कथित तौर पर पोस्ट साझा किया था, जिसके लिये उसकी उसकी हत्या की गई है.

इस मामले की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) ने की थी और आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अलावा गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था. बताते चलें कि यह मुकदमा जयपुर की विशेष एनआईए अदालत में लंबित है.