सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से नकदी बरामद होने के मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करने से बुधवार को इंकार कर दिया. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस मामले में उचित राहत के लिए सक्षम अधिकारी यानि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भी अनुरोध कर सकते हैं, शीर्ष अदालत के पूर्व चीफ जस्टिस ने भी इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई के लिए मामले को उन्हीं के पास भेजा है.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि 8 मई को शीर्ष अदालत द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भारत के पूर्व चीफ जस्टिस ने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट और न्यायाधीश के जवाब को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया है.
पीठ ने कहा,
"आदेश की मांग करने से पहले याचिकाकर्ता को उचित प्राधिकारियों के समक्ष अपना पक्ष रखकर अपनी शिकायत का निवारण करना होगा. इसलिए हम इस रिट याचिका पर विचार करने से इंका करते हैं. इस स्तर पर अन्य याचिकाओं पर गौर करना आवश्यक नहीं है."
आंतरिक जांच समिति द्वारा वर्मा को दोषी ठहराए जाने के बाद पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने का संकेत दिया था. जब जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा. विवाद के बीच वर्मा का स्थानांतरण दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया.
अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा और तीन अन्य द्वारा दायर याचिका में आपराधिक कार्यवाही तत्काल शुरू करने का अनुरोध किया गया. याचिका में कहा गया है कि आंतरिक समिति ने न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया है. इस याचिका में यह भी कहा गया कि आंतरिक जांच से न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह लागू कानूनों के तहत आपराधिक जांच का विकल्प नहीं है. मार्च में, इन्हीं याचिकाकर्ताओं ने आंतरिक जांच को चुनौती देते हुए और औपचारिक पुलिस जांच की मांग करते हुए शीर्ष न्यायालय का रुख किया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया गया.
जस्टिस यशवंत वर्मा के अधिकारिक आवास से कैश मिलने के मामले में तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भारत के पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना को सौंपी थी. रिटायर होने से पहले सीजेआई संजीव खन्ना ने यह रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजा था. इसी दौरान उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई.
बताते चलें कि इन-हाउस कमेटी गठित करने से पहले भी सीजेआई संजीव खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मामले को लेकर रिपोर्ट तलब किया था. वहीं, सीजेआई संजीव खन्ना के निर्देश पर, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने जस्टिस यशवंत वर्मा से घटना को लेकर उनका जबाव मांगा. निर्देशों के अनुसार, जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपना जबाव चीफ जस्टिस को सौंपा था.
जस्टिस यशवंत वर्मा ने जबाव देते हुए लिखा कि, आगजनी की यह घटना उस समय हुई जब मैं और मेरी पत्नी मध्य प्रदेश में यात्रा कर रहे थे. केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर थीं. उन्हें आग लगने की सूचना सबसे पहले उनकी बेटी और निजी सचिव ने दी, जैसा कि रिकॉर्ड में दर्ज है. आगजनी की जगह एक स्टोर रूम था, जिसका उपयोग अक्सर फर्नीचर, बॉटल्स, और अन्य सामान को डंप करने लिए किया जाता था. साथ ही यह कमरा मुख्य निवास से अलग है और यह जगह सभी कर्मचारियों के लिए खुला था. मैं स्पष्ट करता हूं कि यह कमरा उनके घर का हिस्सा नहीं है, जैसा कि कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है. जबाव में जस्टिस यशवंत वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी इस स्टोर रूम में कोई नकद रखा. यह आरोप पूरी तरह से निराधार है. उनका कहना है कि यह विचार कि कोई व्यक्ति खुले और सार्वजनिक स्टोर रूम में नकद रखेगा, यह बिल्कुल असंभव है.
जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) करने के बाद मध्य प्रदेश के रीवा यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की. वहीं, साल 1992 में वकालत में एनरोलमेंट कराया. साल 2014 में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत किया गया था. यहां सात साल तक सेवा देने के बाद उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया गया था, जहां उनके अधिकारिक आवास से कैश मिलने की घटना हुई. घटना के बाहर आने के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा का वापस से इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. जस्टिस यशवंत फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट में कार्यरत है.
अपने अब तक के तीस साल के ज्यूडिशियल करियर में जस्टिस यशवंत वर्मा ने कई अहम फैसले सुनाए हैं. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ 100 करोड़ के इनकम टैक्स नोटिस को बरकरार रखना और डॉ. कफील खान को जमानत देना उनके महत्वपूर्ण फैसले में शामिल है. विस्तार से बताएं तो, साल 2018 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान, जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने ही डॉ. कफील खान को जमानत दी थी. डॉ. खान पर गोरखपुर में ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित होने के कारण बच्चों की मौत के मामले में चिकित्सीय लापरवाही का आरोप था. जस्टिस वर्मा ने यह कहते हुए जमानत दी कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली जिससे यह साबित हो कि डॉ. खान ने चिकित्सीय लापरवाही की है.
वहीं, हाल ही में कांग्रेस पार्टी के इनकम टैक्स भरने का मामला भी काफी चर्चा में रहा था. जब कांग्रेस पार्टी ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. तब दिल्ली हाई कोर्ट में, जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस पुरुषेन्द्र कुमार कौरव की पीठ ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को सही ठहराते हुए, कांग्रेस पार्टी को राहत देने से इंकार किया था.