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क्या भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है? सुप्रीम कोर्ट ने बीएस येदियुरप्पा मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा

बीएस येदियुरप्पा के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट के बड़ी बेंच को यह तय करना होगा कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अभियोजन के लिए पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है, खासकर न्यायिक मजिस्ट्रेट के जांच के आदेश के बाद.

Written by Satyam Kumar |Published : April 21, 2025 7:55 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा की याचिका से उत्पन्न कानूनी मुद्दों को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया है. अब इस मामले में बड़ी पीठ को यह तय करना पड़ेगा कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट अदालत के जांच के आदेश के बाद मुकदमा चलाने के लिए पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को फिर से शुरू करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक शिष्टाचार के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला देने से परहेज किया और इसे एक बड़ी पीठ को भेजने का फैसला किया. बता दें कि ऐसा ही एक समान कानूनी मुद्दों वाला मामला पहले ही बड़ी पीठ को रेफर किया जा चुका है.

जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने न्यायिक शिष्टाचार के आधार पर निर्णय पारित करने से इंकार कर दिया. और मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने के लिए CJI संजीव खन्ना के पास रेफर किया है.

पीठ ने कहा,

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"हमने इस मामले को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा था, जबकि उक्त प्रश्नों पर विचार करते हुए. लेकिन जब हम निर्णय की तैयारी कर रहे थे, तब हमें इस अदालत के 16 अप्रैल 2024 के आदेश का पता चला."

इसके बाद, पीठ ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उचित आदेशों के लिए प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.

कर्नाटक हाई कोर्ट ने 5 जनवरी 2021 को बेंगलुरु के ए. आलम पाशा की याचिका को स्वीकार करते हुए येदियुरप्पा, पूर्व उद्योग मंत्री मुरुगेश आर. निरानी और कर्नाटक उद्योग मित्रा के पूर्व प्रबंध निदेशक शिवस्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को फिर से शुरू किया. पाशा ने येदियुरप्पा और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए थे. हाई कोर्ट ने कहा कि पूर्व अनुमति की अनुपस्थिति ने एक पहले की शिकायत को रद्द करने की अनुमति नहीं दी, लेकिन जब आरोपी ने कार्यालय छोड़ दिया, तो एक नई शिकायत दाखिल करने की अनुमति दी. हालांकि, पीठ ने मामले में एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व प्रधान सचिव वी. पी. बलिगर के अभियोजन की अनुमति नहीं दी.

सुप्रीम कोर्ट ने कई प्रश्न उठाए, जिनमें ये शामिल हैं कि क्या मजिस्ट्रेट द्वारा जांच के आदेश देने के बाद, उचित प्राधिकरण की पूर्व अनुमति की आवश्यकता है या नहीं. इसके तहत, अदालत ने यह भी पूछा कि क्या एक मजिस्ट्रेट बिना पूर्व अनुमति के जांच शुरू कर सकता है.

पाशा ने येदियुरप्पा और अन्य पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दस्तावेजों को फर्जी तरीके से तैयार किया ताकि उच्च स्तरीय मंजूरी समिति की स्वीकृति को रद्द किया जा सके. यह शिकायत पहले लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच की गई थी, लेकिन 2013 में उच्च न्यायालय ने इसे अनिवार्य अनुमति की कमी के कारण रद्द कर दिया था. इसके बाद, जब आरोपी ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया, तो पाशा ने 2014 में एक नई शिकायत दाखिल की. उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के ए. आर. अंतुल्य मामले के निर्णय के अनुसार अब अनुमति की आवश्यकता नहीं है। लेकिन विशेष न्यायाधीश ने 2016 में दूसरी शिकायत को अनुमति की कमी के कारण खारिज कर दिया. पाशा ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील की, जिसने आंशिक रूप से उनके पक्ष में आदेश पारित किया. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि इस प्रकार के मामलों में कानूनी प्रक्रिया क्या होगी.

(खबर एजेंसी इनपुट के आधार पर है)