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बिना किसी कानूनी राहत, मनमाने तरीके से... असम में विदेशी नागरिकों के निर्वासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका किया दावा

विदेशी नागरिकों के डिपोर्टेशन से आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर इस नई याचिका में दावा किया गया कि असम सरकार राष्ट्रीयता सत्यापन किए बिना या कानूनी विकल्प देने के बिना संदिग्ध विदेशियों को हिरासत में ले रही है और निर्वासित कर रही है.

Written by Satyam Kumar |Published : June 1, 2025 2:54 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया गया है कि असम सरकार कथित तौर पर राष्ट्रीयता सत्यापन किये बिना या कानूनी विकल्पों अपनाने का अवसर दिये बगैर संदिग्ध विदेशियों हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए व्यापक और मनमाना अभियान शुरू किया है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के चार फरवरी के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें एक अलग याचिका पर विचार करते हुए असम सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह 63 घोषित विदेशी नागरिकों, जिनकी राष्ट्रीयता ज्ञात है, को दो सप्ताह के भीतर निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू करे.

ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि उक्त आदेश (4 फरवरी के) के अनुसरण में... असम राज्य ने विदेशी होने के संदेह वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए व्यापक और मनमाना अभियान शुरू किया है, यहां तक ​​कि विदेशी न्यायाधिकरण की घोषणा, राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपायों के समाप्त हुए बिना भी.

अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दाखिल याचिका में मीडिया में आई खबरों का हवाला दिया गया, जिसमें एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक की भी खबर थी जिसे कथित तौर पर बांग्लादेश निर्वासित कर दिया गया है. ये घटनाएं असम पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी द्वारा अनौपचारिक तौर से लोगों को निर्वासित करने की परिपाटी दर्शाती हैं, जिसमें किसी भी न्यायिक निगरानी या भारत के संविधान या इस अदालत द्वारा परिकल्पित सुरक्षा उपायों का पालन नहीं किया जाता है.

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याचिका में आरोप लगाया गया है कि धुबरी, दक्षिण सलमारा और ग्वालपाड़ा जैसे सीमावर्ती जिलों में ‘वापस भेजने’ की अपनाई जा रही यह नीति न केवल कानूनी रूप से स्वीकार्य है, बल्कि इससे बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों, विशेषकर गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों के लोगों के राज्यविहीन होने का खतरा है, जिन्हें या तो एकतरफा विदेशी घोषित कर दिया गया है या जिनके पास अपनी स्थिति को चुनौती देने के लिए कानूनी सहायता तक पहुंच नहीं है.

याचिका में कहा गया कि इस तरह की कार्रवाई संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के पूरी तरह खिलाफ है. वापस भेजने की नीति में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही व्यक्तियों को निर्वासित किया जा रहा है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है. इससे उन्हें अपने निर्वासन का विरोध करने का अवसर नहीं मिलता और उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है. याचिका में अनुरोध किया गया है कि शीर्ष अदालत निर्देश दे कि किसी भी व्यक्ति को चार फरवरी के आदेश के अनुसार विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व कारण बताए बिना, अपील या समीक्षा का पर्याप्त अवसर दिए बिना और विदेश मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीयता के सत्यापन के बिना निर्वासित नहीं किया जाएगा.