सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से राष्ट्रीय राजधानी में गैंगस्टरों से जुड़े मामलों के त्वरित निपटारे के लिए समर्पित अदालतें स्थापित करने पर विचार करने को कहा. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे. बागची की पीठ ने कहा कि इस समय कुछ खास अदालतें विभिन्न मामलों के बोझ तले दबी हैं और गैंगस्टरों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतें ‘आईपीसी’, ‘एनडीपीएस’ और धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की भी सुनवाई कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस डी संजय से कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार एक साथ बैठकर गैंगस्टर से संबंधित मामलों के लिए समर्पित अदालतें स्थापित करने पर क्यों नहीं निर्णय लेतीं? विशेष अदालतें स्थापित करने से त्वरित सुनवाई हो सकेगी.
शीर्ष अदालत ने बात दिल्ली में 55 मामलों में शामिल कथित दुर्दांत अपराधी महेश खत्री उर्फ भोली की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा. खत्री को दो मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस तरह जघन्य अपराधों की रोजाना आधार पर सुनवाई के लिए त्वरित अदालतों की परिकल्पना की गई थी, उसी तरह गैंगस्टरों के खिलाफ मामलों के लिए समर्पित अदालतें स्थापित की जा सकती हैं.
पीठ ने कहा,
‘‘त्वरित अदालतों ने बहुत उत्साहजनक परिणाम दिए हैं. इसी तरह गैंगस्टर से जुड़े मामलों के लिए भी समर्पित अदालतें हो सकती हैं. हम दुर्दांत अपराधियों की बात कर रहे हैं, न कि छिटपुट घटनाओं की. समाज को इनसे छुटकारा पाना होगा. कानून का राज कायम होना चाहिए और पुलिस को निर्दयी होना होगा.’’
दिल्ली सरकार के हलफनामे का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि 288 मामलों में से केवल 108 मामलों में ही आरोप तय किए गए और उनमें से केवल 25 मामलों में ही अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच की गई.
जस्टिस कांत ने कहा कि आंकड़े खुद कहानी बयां करते हैं कि कैसे गैंगस्टर मुकदमे में देरी करने की कोशिश करते हैं और मुकदमे को जल्दी पूरा करने की व्यवस्था के अभाव में अदालतों को जमानत देने के लिए मजबूर करते हैं. शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा कि जमानत का विरोध करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, अभियोजन पक्ष को मुकदमे को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.