सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मुस्लिम कानून के तहत यदि किसी को कोई उपहार (हिबा) दिया जाता है तो उसके वैध होने के लिए लिखित दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि मौखिक उपहार के लिए तीन आवश्यक शर्तें हैं- दाता की ओर से देने की इच्छा का स्पष्ट प्रकटीकरण, दानकर्ता द्वारा उपहार की स्वीकृति और दानकर्ता द्वारा उपहार की विषय-वस्तु का वास्तविक या रचनात्मक रूप से कब्जा.
जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि अगर कोई मौखिक (बोलकर) उपहार तीन जरूरी शर्तें पूरी करता है, तो वह उपहार पूरा और अटल (जिसे वापस नहीं लिया जा सकता) माना जाएगा. पीठ ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत उपहार के वैध साबित होने के लिए लिखित दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती है। केवल यह तथ्य कि उपहार लिखित रूप में दिया गया है, उसकी प्रकृति या स्वरूप को नहीं बदलता है. उपहार को दर्ज करने वाला एक लिखित दस्तावेज, उपहार का औपचारिक दस्तावेज नहीं बन जाता है. अदालत ने कहा कि वैध उपहार के लिए कब्जा हस्तांतरण एक महत्वपूर्ण और आवश्यक तत्व है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उपहार के तहत कार्य करने के साक्ष्य (किराया वसूलना, स्वामित्व धारण करना, नामांतरण) कब्जे के दावे को पुष्ट करने के लिए आवश्यक हैं. पीठ ने कहा कि यद्यपि मुस्लिम कानून लिखित दस्तावेज़ के बिना मौखिक रूप से उपहार देने की अनुमति देता है, ऐसे उपहार की वैधता तीनों आवश्यक तत्वों, विशेष रूप से कब्जे के हस्तांतरण, के प्रदर्शन पर निर्भर करती है. पीठ ने कहा कि साक्ष्यों के अभाव (यथा-किराया वसूलने में विफलता, दाता का निरंतर नियंत्रण, दाखिल-खारिज न होने) से यह साबित हो जाएगा कि किसी भी लिखित घोषणा के बावजूद, दान कभी पूरा नहीं हुआ. शीर्ष अदालत का यह फैसला कर्नाटक के गुलबर्गा जिले के कुसनूर गांव में कृषि भूमि के विभाजन और कब्जे से संबंधित एक याचिका पर आया, जो मौखिक दान (हिबा) के तहत दी गई थी.