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'जिसने सीट पा ली, वह दूसरे को आने ही नहीं देना चाहता', Supreme Court ने आरक्षण की तुलना ट्रेन की बोगी से करते हुए कहा

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में आरक्षण व्यवस्था रेलगाड़ी की तरह हो गई है जहाँ पहले से सवार लोग औरों को आने नहीं देना चाहते.

सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : May 6, 2025 7:08 PM IST

सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि महाराष्ट्र सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 27% आरक्षण बिना यह जांचे कि क्या वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं, दे दिया. इस मामले पर सुनवाई कर रही पीठ ने नागाजगी जाहिर करते हुए कहा कि आरक्षण, ट्रेन की बोगी की तरह हो गई है, जो एक बार घुस गया, वह दूसरों के लिए जगह बनाना ही नहीं चाहता है.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिस्वर सिंह शामिल थे, ने याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन से कहा कि 'इस देश में आरक्षण एक रेलवे की एक बोगी की तरह हो गया है.' जस्टिस सूर्यकांत ने यह स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था उन लोगों के लिए है जो पहले से ही इस प्रणाली का लाभ उठा रहे हैं और वे नहीं चाहते कि अन्य लोग भी इसमें शामिल हों. यह स्थिति याचिकाकर्ता की भी है, जैसा कि इन्होंने बताया.

याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्थापित जयंत कुमार बंथिया आयोग ने बिना यह निर्धारित किए कि OBC वास्तव में राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं, 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया। संकरनारायणन ने कहा कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन से अलग है. उन्होंने यह सुझाव दिया कि OBC के भीतर राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की जानी चाहिए.

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जस्टिस कांत ने इस बात पर जोर दिया कि समावेशिता के सिद्धांत का पालन करते हुए राज्यों को और अधिक वर्गों की पहचान करनी चाहिए, 'सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लाभ से वंचित क्यों रखा जाए?"

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी कर राज्य सरकार से प्रतिक्रिया मांगी. इस मामले को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ टैग किया गया है. इसके अलावा, न्यायालय ने महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों में OBC आरक्षण के संबंध में एक अन्य मामले में चुनाव आयोग को चार सप्ताह के भीतर चुनावों की अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया, बंथिया आयोग की रिपोर्ट के पहले के स्थिति के अनुसार होगी. चुनाव आयोग को चार महीने के भीतर चुनावों को पूरा करने का आदेश दिया, और आवश्यक मामलों में अधिक समय मांगने की स्वतंत्रता दी गई है.