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'हम हर गतिविधि की निगरानी नहीं कर सकते', Supreme Court ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर दिशा-निर्देश जारी करने से किया इंकार

डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर दिशानिर्देश जारी करने से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस को प्रशिक्षित करना और अन्य नीतिगत मामले सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, न कि न्यायालय के.

Written by Satyam Kumar |Published : April 23, 2025 7:40 PM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों पर हमलों से उनकी सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी करने की याचिकाओं पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि न्यायालय ने कहा कि वह हर घटना पर नजर नहीं रख सकता और यह काम संसद का है. अदालत ने कहा कि इस तरह के दिशानिर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता उचित कानूनी विकल्पों पर विचार कर सकते हैं.

डॉक्टर की सुरक्षा पर दिशानिर्देश देने से इंकार: SC

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित दिशा-निर्देश पहले ही निर्धारित किए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता उचित वाद दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं.

पीठ ने कहा,

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"आप सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि सभी कुछ वह करेगा और प्रत्येक गतिविधि पर निगरानी रखेगा."

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने जब चिकित्सकों पर हमले की घटनाओं का उल्लेख किया, तो पीठ ने कहा कि ये सभी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट यहां बैठकर प्रत्येक घटना की निगरानी नहीं कर सकता है.

चिकित्सकों पर हमला बढ़ने का मामला

पीठ 2022 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें चिकित्सकों पर हमले के मामले बढ़ने का आरोप लगाया गया था और उनकी सुरक्षा के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करने का अनुरोध किया गया था. एक याचिका में राजस्थान के दौसा में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की कथित आत्महत्या की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराने का अनुरोध किया गया है. राजस्थान में प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव के कारण एक मरीज की मौत के बाद भीड़ द्वारा कथित रूप से परेशान किये जाने के बाद स्त्री रोग विशेषज्ञ ने आत्महत्या कर ली थी. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्टूबर, 2022 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर इन याचिकाओं पर जवाब मांगा गया था.

आगे काम संसद का है: SC

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि वास्तविकता यह है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला आ गया हो, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है. पीठ ने पूछा, ‘‘तो फिर दोबारा दिशा-निर्देश देने का क्या मतलब है?’’ जब वकील ने कहा कि संसद ने भी इस मुद्दे पर विचार किया है, तो पीठ ने कहा, ‘‘यह काम संसद को करना है.’’ जब वकील ने दलील दी कि चिकित्सकों पर हमले के मामलों से निपटने के लिए पुलिस को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, तो पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी नीतिगत मामले हैं.’’

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चिंता की बात यह है कि देशभर के पुलिस थाने इलाज के दौरान दुर्भाग्यवश मरीजों की मौत हो होने पर चिकित्सकों के खिलाफ मामले दर्ज कर रहे हैं. पीठ ने पूछा, ‘‘सभी पुलिस थानों के खिलाफ इस तरह का आरोप कैसे लगाया जा सकता है?’’ इसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और निर्देशों का उल्लंघन अवमानना ​​के समान होगा. पीठ ने कहा कि इस तरह सामान्य निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं? शंकरनारायणन ने कहा कि अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नोटिस के अनुसार, चार राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए और उन्होंने याचिका की स्वीकार्यता पर कोई आपत्ति नहीं जताई. पीठ ने पूछा, ‘‘तो क्या एक बार नोटिस जारी होने के बाद दूसरी पीठ इसे (याचिका को) खारिज नहीं कर सकती?’’ पीठ ने कहा, ‘‘यदि यह तुच्छ नहीं है तो यह परेशान करने वाली बात है.’’ शंकरनारायणन ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे न तो परेशान करने वाले हैं और न ही तुच्छ. शंकरनारायणन ने बाद में अनुरोध किया कि क्योंकि चार राज्यों से जवाब आ चुके हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दे.

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