आज सुबह सुप्रीम कोर्ट ने निलंबित आईपीएस संजीव भट्ट याचिका खारिज की है. पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट ने 1990 के हिरासत में मौत (Custodial Death) मामले में सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाने का अनुरोध किया था. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने संजीव भट्ट को जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया. साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि सजा पर रोक लगाने के मामले में इस अदालत की टिप्पणी उनके अपील को प्रभावित नहीं करेगा. पीठ ने भट्ट की आपराधिक अपील की सुनवाई में तेज़ी लाने का आश्वासन दिया. वहीं, जमानत की मांग पर जस्टिस मेहता ने आदेश में कहा कि वे अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने के इच्छुक नहीं हैं और यह अवलोकन केवल जमानत तक ही सीमित रहेगा. इसके साथ संजीव भट्ट द्वारा मांगी गई सभी प्रार्थनाएं खारिज कर दी गई हैं, लेकिन अदालत ने उनकी अपील की सुनवाई में तेज़ी लाने का आश्वाशन दिया.
इससे पहले, 28 फरवरी के दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. इस याचिका में गुजरात हाई कोर्ट के जनवरी 2024 के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें भट्ट की दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आश्वासन दिया है कि वे दोषसिद्धी के खिलाफ उनकी अपील पर जल्द से जल्द सुनवाई करेंगे. कस्टोडिल डेथ मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने जमानगर कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए संजीव भट्ट एवं अन्य आरोपियों की सजा को बरकरार रखा था.
1990 में गुजरात में भारत बंद की गई थी, जिसे रोकने के लिए पुलिस ने 133 लोगों को हिरासत में लिया था. इन लोगों में भूदास माधवजी वैष्णानी भी शामिल थे. उन्हें तकरीबन नौ दिन तक हिरासत में रहना पड़ा, जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई. वहीं, बाहर आने के दस दिन बाद ही उनकी मौत हो गई. प्रभूदास माधवजी वैष्णानी की मृत्यु के कथित कारण हिरासत में यातना बताया गया. 1995 में मजिस्ट्रेट ने इस घटना पर संज्ञान लिया, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट के रोक के कारण साल 2011 तक मुकदमा स्थगित रहा. जून 2019 में, जमनगर जिला सेशन कोर्ट ने भट्ट और पुलिस कांस्टेबल प्रवीण सिंह झाला को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अदालत ने इन दोनों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 323 (जानबूझकर चोट पहुँचाने की सजा) और 506 (1) (आपराधिक धमकी के अपराध की सजा) के तहत दोषी पाया. अब भट्ट ने इस फैसले को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जहां से राहत नहीं मिलने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. वहीं, आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई का आश्वासन दिया है.