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जमानत मिलने पर भी शख्स को जेल में रखने का मामला, जेल अधिकारियों के रवैये से जताई नाराजगी, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार पर लगाया पांच लाख का जुर्माना

धर्मांतरण निषेध कानून में बंद शख्स को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी. बेल मिलने के बावजूद, तकनीकी कारणों से 28 दिन तक जेल में रखे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारियों के रवैये से नाराजगी जाहिर की.

सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : June 26, 2025 10:46 AM IST

अपनी ओर से ज़मानत का आदेश होने के बावजूद एक कैदी की रिहाई में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को अभी के लिए कैदी को 5 लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में न्यायिक जांच का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज, गाज़ियाबाद से इस पूरे मामले की जांच कराने का निर्देश दिया है.

दरअसल कोर्ट की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने और निचली अदालत से रिलीज आर्डर जारी होने बावजूद एक कैदी को 28 दिन तक जेल में रहना पड़ा क्योंकि जमानती आदेश में उन धाराओं का पूरी तरह से उल्लेख नहीं था जिनके तहत कैदी के खिलाफ केस दर्ज था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आदेश में कैदी के खिलाफ केस और अपराध का साफ साफ उल्लेख था तो सिर्फ अपराध की उपधारा का उल्लेख न होने के तकनीकी आधार पर रिहाई को नहीं रोका जा सकता.

इस केस में आफताब नाम के शख्श पर IPC 366 और अवैध धर्मांतरण निषेध कानून के सेक्शन 5(1) के तहत 2024 में केस दर्ज किया गया था. इस साल 29 अप्रैल को आफताब को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी. 27 मई को एडिशनल सेशन जज ने रिलीज आर्डर जारी किया लेकिन इसके बावजूद आफताब की इस आधार पर रिहाई नहीं हो पाई क्योंकि जमानत के आदेश में अवैध धर्मांतरण निषेध क़ानून के सेक्शन 5 की उपधारा (1) का उल्लेख नहीं था. इसके मद्देनजर 29 अप्रैल के आदेश में संसोधन की मांग के साथ आफताब ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए जेलर सुपरिटेंडेंट को व्यक्तिगत रुप से पेश होने को कहा था. कोर्ट ने इसके साथ ही यूपी के जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने को कहा था.

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कोर्ट के आदेश के मद्देनजर आज यूपी के जेल महानिदेशक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और गाजियाबाद जेल सुपरिटेंडेंट व्यक्तिगत रूप से पेश हुए. आज सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने बताया कि आफताब को कल रिहा कर दिया गया है. उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए सफाई दी कि रिहाई ऑर्डर में धारा का पूरा उल्लेख होना जरूरी था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस सफाई से सन्तुष्ट नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में किसी को कोई भ्रम नहीं था कि आरोपी के खिलाफ क्या केस था या किन धाराओं के तहत उस पर मुकदमा दर्ज किया था. कोर्ट से जमानत  मिल गई है, इस आदेश को लेकर कोई संदेह नहीं था, फिर सिर्फ तकनीकी आधार पर किसी की स्वतंत्रता को बाधित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने यूपी के डीजी से कहा कि क्या गारंटी है कि इस तरह की तकनीकी वजहों से दूसरे लोग जेल में बंद न हो. आपको अपने अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की जरूरत है.

सुनवाई के दौरान यूपी के डीआईजी की ओर से बताया गया कि इस मामले में विभागीय जांच शुरू हो गई है. हालांकि कोर्ट का कहना था कि इस मामले में न्यायिक जांच की ज़रूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज, गाज़ियाबाद से इस पूरे मामले की जांच कराने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक जांच इस पहलू की हो कि आखिर 27 मई को रिलीज आर्डर जारी होने के बाद कैदी को क्यों हिरासत में रखा गया. क्या सिर्फ कानून की उपधारा का उल्लेख न होने के चलते ऐसा किया गया या फिर इसके पीछे कोई दूसरी वजह थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जेल अधिकारियों की भूमिका की जांच का भी आदेश दिया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चेताया है कि अगर उनकी गलती निकली तो जुर्माने की रकम उनसे भी वसूली जा सकती है.