सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक तमिल रिफ्यूजी की याचिका पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता तमिल रिफ्यूजी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई 'धर्मशाला' नहीं है जो पूरे विश्व के शरणार्थियों का स्वागत कर सके. जस्टिस दीपंकर दत्ता ने आगे कहा कि भारत 140 करोड़ की जनसंख्या के साथ अपने ही मुद्दों से जूझ रहा है और इस स्थिति में अंतरराष्ट्रीय शरणार्थियों का स्वागत नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए तमिल रिफ्यूजी की याचिका खारिज कर दी. मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता से कहा था कि उसकी 7 साल की सजा पूरी होने के उसे तुरंत बाद उसे भारत छोड़ना होगा.
शख्स ने इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका में उसने दावा किया कि वह एक श्रीलंकाई तमिल है जो वीजा पर भारत आया था और उसके घर वापस जाने पर उसकी जान को खतरा है. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उसकी पत्नी कई बीमारियों से ग्रसित है और उसका बेटा जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है। ऐसे में, उसके लिए अपने परिवार को छोड़कर वापस जाना और भी कठिन हो सकता है. याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया कि वह 2009 में श्रीलंकाई युद्ध में LTTE का सदस्य रह चुका है और इसलिए उसे श्रीलंका में गिरफ्तार किया जा सकता है. यह स्थिति न केवल उसके लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करती है.
इस पर जस्टिस दत्ता ने सुझाव दिया कि वह किसी अन्य देश में जाएं. आगे याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि वह लगभग तीन वर्षों से हिरासत में है और उसकी वापसी की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है.
जस्टिस दत्ता ने आगे पूछा, "आपको यहां बसने का अधिकार कैसे है?" जस्टिस ने इस बात पर जोर दिया कि Article 19 के तहत भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल नागरिकों के लिए है.
हाल ही में एक अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों की निर्वासन प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. याचिकाकर्ता को 2015 में LTTE के संभावित सदस्य के रूप में गिरफ्तार किया गया था और 2018 में UAPA के तहत 10 साल की सजा सुनाई गई थी. 2022 में, मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया लेकिन उसे निर्देश दिया कि वह अपनी सजा पूरी करने के बाद तुरंत भारत छोड़ दे. आज सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी.