Advertisement

बिहार के पूर्व विधायक को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, सरकारी बंगले का 20 लाख रूपये से अधिक किराया चुकाने का आदेश रखा बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक की उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें सरकारी बंगले में निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रहने के कारण लगाए गए 20 लाख रुपये से अधिक के आवास किराये का विरोध किया गया था.

Supreme Court

Written by Satyam Kumar |Published : July 22, 2025 8:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एक पूर्व विधायक की उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें सरकारी बंगले में निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रहने को लेकर दंड स्वरूप 20 लाख रुपये से अधिक का आवास किराया अदा करने की मांग का विरोध किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी को भी सरकारी आवास पर अंतहीन समय तक कब्जा नहीं रखना चाहिए.

चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह की अपील पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने तीन अप्रैल को एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें पटना के टेलर रोड स्थित एक सरकारी बंगले में अनधिकृत रूप से रहने को लेकर मकान किराये के रूप में दंडस्वरूप 20.98 लाख रुपये से अधिक की अदायगी संबंधी राज्य सरकार की मांग को बरकरार रखा गया था. चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी को भी सरकारी आवास पर अंतहीन समय तक कब्जा नहीं रखना चाहिए. हालांकि, पीठ ने पूर्व विधायक को कानूनी उपाय का सहारा लेने की छूट प्रदान की. इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को वापस ले लिया गया मानते हुए खारिज कर दिया।

इससे पहले पटना हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश की पीठ के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें सिंह की याचिका को सुनवाई योग्य नहीं होने के आधार पर खारिज कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि सिंह ने पहले भी इसी तरह की एक याचिका दायर की थी और मामले को फिर से दायर करने की छूट मांगे बिना उसे बिना शर्त वापस ले लिया था. ढाका निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार के विधायक सिंह को विधानसभा सदस्य रहने के दौरान पटना के टेलर रोड स्थित सरकारी आवास 3 आवंटित किया गया था.

Also Read

More News

चौदह मार्च 2014 को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद, सिंह 12 मई 2016 तक इसी बंगले में रहे. हालांकि, उस दौरान यह आवास पहले से ही एक कैबिनेट मंत्री के लिए आवंटित था. पूर्व विधायक ने कहा कि उनके इस्तीफे और 2014 के संसदीय चुनावों में हार के बाद, उन्हें राज्य विधानमंडल अनुसंधान और प्रशिक्षण ब्यूरो में नामित किया गया था और इसलिए वह 2008 की अधिसूचना के तहत एक मौजूदा विधायक के समान भत्ता और विशेषाधिकार प्राप्त करने के पात्र थे. हाई कोर्ट में यह दलील दी गई थी कि इससे उन्हें उसी बंगले में बने रहने का अधिकार मिल गया और भवन निर्माण विभाग के 24 अगस्त 2016 के पत्र को चुनौती दी गई, जिसमें कथित रूप से अधिक समय तक रहने के लिए दंड स्वरूप 20,98,757 रुपये का किराया अदा करने को कहा गया था.