नई दिल्ली: अक्सर देखा गया है कि न्यायालय में गवाह अपने ही द्वारा पुलिस के समक्ष दिए गए बयान से मुकर जाता है और साथ ही साथ पीड़ित/अभियुक्त के खिलाफ हो जाता है, जिससे न सिर्फ पीड़ित/अभियुक्त का उससे विश्वास उठ जाता है अपितु गवाह की विश्वसनीयता पर भी संदेह होता है तो न्यायालय ऐसे गवाह के कथन पर विश्वास न करके साक्ष्यों या फिर परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर अपना निर्णय देता है। क्या है भारतीय साक्ष्य अधिनियम में इससे सम्बंधित प्रावधान, आइये जानते है.
इस धारा 154 के अनुसार पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी से प्रश्न किया जाना —(1) न्यायालय उस व्यक्ति को, जो साक्षी को बुलाता है, उस साक्षी से कोई ऐसे प्रश्न करने की अपने विवेकानुसार अनुज्ञा दे सकेगा, जो प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिपरीक्षा में किये जा सकते हैं। [(2)] इस धारा की कोई बात, उपधारा (1) के अधीन इस प्रकार अनुज्ञात किये गए व व्यक्ति को ऐसे साक्षी के किसी भाग का अवलंब लेने के हक से वंचित नहीं करेगी।]"
इस धारा के तहत (यदि अदालत द्वारा अनुमति दी जाती है तो) एक पक्ष अपने ही गवाह का प्रति परीक्षण ठीक उस प्रकार से कर सकता है जैसे उसका प्रति परीक्षण विरोधी पक्ष (Adverse Party) करता। ऐसे प्रति परीक्षण किए जाने का मतलब होता है कि:-
1) धारा 143 के अनुसार, सूचक प्रश्न पूछे जा सकेंगे एंव धारा 145 के अंतर्गत, उसके पूवर्तन लेखबद्ध कथन (Cross-examination as to previous statements in writing) के बारे में प्रश्न पूछे जा सकेंगे और इसके साथ ही धारा 146 के अंतर्गत, उसकी सत्यवादिता परखने (to test his truthfulness) से सम्बंधित, वह कौन है (who he is) और जीवन में उसकी स्थिति क्या है (and what is his position in life) इससे सम्बंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
किसी मामले में जब किसी पक्ष द्वारा एक गवाह अदालत के समक्ष पेश किया जाता, तो ऐसा माना जाता है कि जिस पक्ष ने उस गवाह को बुलाया है, वह गवाह उस पक्ष के हित में अदालत के समक्ष गवाही देगा। आम तौर पर वह ऐसा कुछ भी अदालत के समक्ष नहीं कहेगा, जो कि विरोधी पक्ष (Adverse Party) के हित में हो या उसे फायदा पहुंचाए।
यहां बता दें कि जो पक्ष अपनी तरफ से किसी गवाह को अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए बुला रहा है वह उसके पक्ष में ही बोलेगा, इसलिए धारा 145 के साथ (r/w) धारा 146 का अध्ययन जरुरी है, विरोधी पक्ष को ऐसे गवाह की सत्यवादिता परखने वाले प्रश्न पूछने की अनुमति दी जाती हैं और वह उसका प्रति परीक्षण (Cross Examination) कर सकता है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अदालत, गवाह द्वारा दिए गए कथन/साक्ष्य को तब ही मान्यता देता है जब उसका प्रति-परीक्षण (Cross-examination) कर लिया जाता। वास्तव में, प्रति परीक्षण के जरिये दूसरे पक्ष द्वारा यह कोशिश की जाती है कि ऐसे गवाह को किसी प्रकार से अविश्वसनीय साबित कर दिया जाए और इसीलिए उसे साक्ष्य अधिनियम में प्रति परीक्षा लेने की अनुमति दी गयी है, जिससे उस गवाह द्वारा दी गयी गवाही का कोई मतलब न रह जाये (यदि प्रति परिक्षण में वह सफल नहीं रहता) और विरोधी पक्ष को इसका फायदा मिल सके।
इसके तीन चरण है-
इस मामले में यह कहा गया कि एक गवाह को पक्षद्रोही गवाह और जिस पक्ष ने उसे बुलाया उसके द्वारा प्रति परीक्षा के लिए उसे उत्तरदायी तब माना जाना चाहिए, जब अदालत इस बात को लेकर संतुष्ट हो कि वह गवाह उस पक्ष के खिलाफ, जिसके लिए वह साक्षी के तौर पर पेश हुआ है, शत्रुतापूर्ण दुश्मनी (hostile animus) का भाव रखता है या वह सत्य बोलने के लिए तैयार नहीं है।