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वकील को कब किया जा सकता है गिरफ्तार, कानून के तहत उन्हें क्या हैं विशेषाधिकार?

भारत में वकील को कब गिरफ्तार किया जा सकता है, उसकी क्या शर्ते हैं और कानून के तहत उन्हें क्या कोई विशेषधिकार मिले हैं, जानिए

When Can an advocate be arrested and special privileges given according to Advocates Protection Bill 2021

Written by My Lord Team |Published : June 29, 2023 6:24 PM IST

अनन्या श्रीवास्तव

देश के हर नागरिक के पास न्याय पाने का अधिकार है और उसे यह न्याय मिल सके इसके लिए वकील हैं, जो लोगों की तरफ से अदालत के समक्ष केस लड़ते हैं और जनता को उनका हक दिलाने का प्रयास करते हैं। एक वकील के हितों की रक्षा के लिए एक खास कानून बनाया गया है जिसमें उन्हें लेकर तमाम प्रावधान हैं।

दोषियों को जेल की हवा खिलाने वाले वकील को कब गिरफ्तार किया जा सकता है और कानून के तहत इन्हें क्या विशेषाधिकार दिए गए हैं, आइए सबकुछ जानते हैं...

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वकीलों के हितों की सुरक्षा हेतु कानून

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वकीलों के हितों को संरक्षित करने हेतु उनके लिए एक खास कानून है जिसका नाम 'अधिवक्ता अधिनियम, 1961' (The Advocates Act, 1961) है। इस अधिनियम के तहत 'अधिवक्ता' वो है जिसके पास लॉ की डिग्री है, जिसका बार काउंसिल में पंजीकरण हो चुका है और जो किसी भी पार्टी की तरफ से उनके लिए अदालत में मुकदमा लड़ सकता है।

2021 में भारत के बार काउंसिल ने वकीलों की सुरक्षा और उनके हितों के लिए 'अधिवक्ता संरक्षण विधेयक, 2021' (The Advocates Protection Bill, 2021) जारी किया जिसमें कुल 16 धाराएं हैं। इस कानून के तहत एक अधिवक्ता को कब गिरफ्तार किया जा सकता है और उन्हें आमतौर पर किस तरह विशेषाधिकार दिए गए हैं, आइए जानें

वकील को कब किया जा सकता है गिरफ्तार?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'अधिवक्ता संरक्षण विधेयक, 2021' की धारा 11 में यह स्पष्ट किया गया है कि एक अधिवक्ता को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है या उनके खिलाफ किसी मामले में कार्रवाई तब तक नहीं हो सकती है जब तक एक मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) की तरफ से विशेष आदेश (special order) न आया हो।

पुलिस अधिकारी को जब किसी अधिवक्ता के खिलाफ जानकारी दी जाती है तो वो इसे लिखकर सबसे पहले नजदीकी मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट दिखाता है जिसके बाद मैजिस्ट्रेट मामले में एक प्रारम्भिक जांच करते हैं। इस जांच के दौरान मैजिस्ट्रेट वकील को भी एक नोटिस जारी करते हैं और उसे अपनी बात कहने और अपने पक्ष को रखने का मौका दिया जाता है।

यदि मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट को यह पता चल गया है कि अधिवक्ता के खिलाफ दायर की गई एफआईआर (FIR) फर्जी है या किसी व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते दायर की गई है, तो उसे अधिवक्ता को तुरंत जमानत दे सकते हैं। दोषी को जुर्माना देना पड़ेगा जिसकी कीमत दो लाख से दस लाख रुपये के बीच होगी।

वकीलों के लिए विशेषाधिकार?

इस विधेयक की धारा 2 के तहत यदि कोई शख्स किसी वकील के साथ 'हिंसा' (act of violence) करता है, तो उसे दंड मिलेगा। बता दें कि 'एक्ट ऑफ वायलेंस' के तहत वकील के किसी एक मामले या उनके काम को खराब करने की कोशिश, मारपीट, शोषण, उनके खिलाफ आपराधिक शक्ति का इस्तेमाल, जबरदस्ती, शारीरिक या मानसिक तौर पर चोटिल करना या फिर जान को खतरे में डालना- सभी शामिल है।

कोई यदि किसी वकील के साथ उनके क्लाइंट के साथ निजी कॉन्वर्सेशन्स को शेयर करने के लिए या फिर केस से पीछे हट जाने के लिए जबरदस्ती करता है, कानूनी कार्यवाही के दौरान अनुचित भाषा का इस्तेमाल करता है या फिर एक अधिवक्ता की प्रॉपर्टी या उनके दस्तावेजों को खराब करने का प्रयास करता है, वो भी 'एक्ट ऑफ वायलेंस' के तहत आता है।

'एक्ट ऑफ वायलेंस' की सजा

इस विधेयक की धारा 3 और धारा 4 में स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई शख्स वकील के साथ 'एक्ट ऑफ वायलेंस' करता है तो उसे क्या सजा मिलेगी। यदि कोई इस मामले में पहली बार दोषी पाया जाता है तो उसे जेल की सजा सुनाई जाती है जिसकी अवधि छह महीने और पांच साल के बीच की होती है; साथ में दोषी पर एक लाख रुपये तक का आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाता है।

किसी को यदि दूसरी बार इस तरह के मामले में दोषी करार दिया जाता है, उसे कम से कम एक साल और अधिकतम दस साल की जेल होती है और साथ में उसपर जुर्माना भी लगाया जाता है जिसकी कीमत कम से कम दो लाख रुपये होती है।

इसके अलावा इस विधेयक के तहत वकीलों को और बी कई विशेषाधिकार मिलते हैं। 'एक्ट ऑफ वायलेंस' के कुछ मामलों में वकीलों को मुआवजा दिया जाता है, विधेयक में उनकी आर्थिक सहायता के लिए भी प्रावधान हैं और उन्हें अदालत में लड़ रहे उनके मामलों में जरूरत पड़ने पर पुलिस प्रोटेक्शन भी दिया जा सकता है।