बुलडोजर जस्टिस यानि कि किसी आरोपी के घर ढहा कर सजा देने की प्रक्रिया. इस सजा तय करने और सजा देने की घटना को सुप्रीम कोर्ट ने शक्तियों के बंटबारे (Separation of Power) का उल्लंघन पाया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सवाल किया कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आशियाना छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है. हमने लोगों के मौलिक अधिकारों के बारे में विचार किया है. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) राज्य सरकार की मनमानी कार्रवाई से संरक्षण प्रदान करते है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या कार्यपालिका अपने कार्यों को पूरा करने के लिए न्यायपालिका की जगह ले सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने राज्य के मनमाने ढंग से घरों को ढहाने के रवैये पर रोक लगाई है. साथ ही साफ-साफ कहा है कि इस अदालत की गाइडलाइन का पालन किए बिना कोई अधिकारी घर ध्वस्त करता है तो उसके खिलाफ अदालत की अवमानना का चलाया जाएगा. साथ ही नुकसान की भरपाई जिम्मेदार अधिकारी को ही करनी पड़ेगी. अदालत ने साफ कहा कि सजा देना एक न्यायिक कार्य है, जो कि न्यायपालिका के अंदर आता है. कार्यपालिका कभी भी अपने कार्यों को पूरा करने के लिए न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Power) या बटवारें को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारा संविधान लोकतंत्र के तीनों अंगों- कार्यपालिया, विधायिका और न्यायपालिका के कार्यों स्पष्ट बांटती है. विधायिका को संविधान के अनुसार नियम बनाने का अधिकार है, कार्यपालिका को शक्ति मिली है कि वे संविधान और विधायिका द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करवाने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करें, जबकि न्यायिक कार्य न्यायपालिका को सौंपा गया है. इस अदालत ने पहले भी अपने कई फैसलों में शक्तियों के पृथक्करण को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत को दोहराया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने संवैधानिक बेंच द्वारा दिए फैसले को दोहराते हुए कहा कि भले ही हमारा संविधान इस बात पर कठोरता से तीनों भागों के कार्यों के बंटवारे पर जोड़ ना देता हो लेकिन संविधान राज्य के एक भाग द्वारा उसके दूसरे भाग को निर्देशित कार्य की कल्पना भी नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि संविधान में कार्यकारी शक्ति का तात्पर्य विधायी और न्यायिक कार्यों को हटा दिए जाने के बाद बचे हुए सरकारी कार्यों से है.
शक्तियों के पृथक्करण को स्पष्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण और अन्य (Indira Nehru Gandhi vs Raj Narain and another) मामले में दिए अपने फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि शक्तियों का पृथक्करण हमारे संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. भले ही संसद कानून बना सकती है, लेकिन ये निर्देश किसी लंबित मामले में आरोपी को बरी कर दिया जाए या किसी मुकदमे को डिक्री मान लिया जाए. हमारे संविधान को भले ही दावा किया जाए कि शक्तियों का कठोरता से पृथक्करण नहीं किया गया हो, लेकिन इसका उद्देश्य सत्ता की सभी शक्तियों को एक जगह केन्द्रित होने से रोकना है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान आईआर कोएलो (मृत) एल.आर बनाम टीएन राज्य (IR Coelho (Dead) by LRs. vs State of TN) मामले में संवैधानिक पीठ द्वारा दिए गए चेक एंड बैलेंस की थ्योरी का भी जिक्र किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने पहले भी माना है कि समानता (Equality), कानून का शासन (Rule of Law), न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) और शक्तियों का पृथक्करण (separation of Power) संविधान के मूल ढांचे के अंग हैं. इनमें से प्रत्येक अवधारणा एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। यह माना गया है कि अगर कानून के सामने समानता नहीं है तो कानून का शासन नहीं हो सकता. यदि कानून का उल्लंघन न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है तो नागरिकों को मिले अधिकार निरर्थक होंगे, इसलिए यह तय करने का कर्तव्य न्यायपालिका पर रखा गया है कि क्या सीमाओं का उल्लंघन किया गया है या नहीं? इस आधार पर यह अदालत यानि की सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका को निर्देश जारी कर सकता है और इसके लिए दिशा-निर्देश भी तैयार कर सकता है.
अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर जस्टिस की घटना के सवाल पर विचार करते हुए कहा कि जब न्यायिक कार्य न्यायपालिका को सौंपे गए हैं, तो क्या राज्य सरकार के अधिकारी न्यायिक कार्य स्वयं कर सकते हैं और बिना किसी मुकदमे के व्यक्ति को उसकी संपत्ति को ध्वस्त करने की सजा दी जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाते हुए कहा कि हमारे विचार से, संवैधानिक तौर पर भी ऐसा करना अनुचित होगा. कार्यपालिका अपने कार्यों को करने में न्यायपालिक की जगह कभी नहीं ले सकती है. यानि कि किसी व्यक्ति का मनमाने ढंग से घर गिराकर बुलडोजर जस्टिस देने का अधिकार नहीं है.
आप सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन यहां से पढ़े...