नई दिल्ली: हमारे देश में शादी को जन्म जन्मांतर का बंधन माना जाता है, लेकिन कभी-कभी यह रिश्ता आपसी मनमुटाव या फिर समझ की कमी जैसे सामान्य सी बात को लेकर कुछ समय के बाद ही टूट जाता है और परिवार बिखर जाता है. इस तरह के मामलों में, एक महिला को अपने पति के साथ रहने और जीवन जीने के लिए मजबूर करने के लिए कानूनी कदम उठाने का पूरा अधिकार है.
आपको बता दे कि ऐसा कानूनी अधिकार न केवल महिलाओं के लिए उपलब्ध है, बल्कि पुरुष भी इस अधिकार का लाभ उठा सकता है यदि उसकी पत्नी बिना किसी उचित कारण के दूर हो जाती है.
शादी और परिवार को टूटने से बचाने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट में प्रावधान मौजूद है. हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के Chapter III की धारा 9 में वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Restitution of conjugal rights) के बारे में बताया गया है. अगर पति और पत्नी में से कोई एक दूसरे को बिना बोले या बिना ठोस कारण के छोड़ के चला जाए या दूसरे के समाज से हट जाए तो उन दोनों में से कोई भी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 9 के अंतर्गत रेस्टिटूशन ओफ़ कोनजुगल राइट्स का इस्तेमाल करते हुए जिला न्यायालय (District Court) में याचिका दायर कर सकता हैं.
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दिए गए बयानों से संतुष्ट होने के बाद, कोर्ट, पति या पत्नी जो घर से चले गए हैं, उनको वापस आने का निर्देश दे सकती है.
यह कानून हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 2(1)(a) के तहत जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत अथवा ब्राह्मो समाज, प्रार्थना समाज या आर्य समाज के अनुयायी भी आते हैं, धर्मतः हिन्दू हो.
रेस्टीटूशन ऑफ़ कोंजूगाल राइट्स से संबंधित केस: (Harvinder Kaur vs Harmander Singh Choudhary)
यह मामला वर्ष 1984 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सुना गया. इस केस में पत्नी अपने पति को बिना बोले छोड़ कर चली जाती है और बहुत दिनों तक वापस नहीं आती है. पति अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 के तहत रेस्टीटूशन ऑफ़ कोंजूगाल राइट्स का केस दर्ज करवाता है.
पति द्वारा केस करने के बाद कोर्ट पत्नी को पति के पास वापस आने का आदेश देती है लेकिन पत्नी वापस नहीं आती है. वह डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के निर्णय को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती देती है. उसका कहना था कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 असंवैधानिक है क्योंकि यह उसके संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
दिल्ली हाई कोर्ट उस महिला के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाता है और आदेश दिया की हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 9 असंवैधानिक नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का हनन नहीं करता.