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Property Registration कराने की प्रक्रिया हैं? जानिए इस दौरान किन-किन डॉक्यूमेंट्स की जरूरत होती है

अगर आपका नाम सरकारी रिकार्ड में बतौर मकान मालिक नहीं लिखा होगा, तब मालिकाना (Ownership) साबित करना मुमकिन नहीं है. इस कारण से, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन हर खरीदार के लिए अनिवार्य है.

प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन कराता हुआ व्यक्ति

Written by Satyam Kumar |Published : November 4, 2024 11:18 AM IST

हम जब भी किसी संपत्ति को खरीदते है तो सबसे पहले हमारे मन में एक सवाल उत्पन्न होता है कि कैसे और कहां पर इसकी रजिस्ट्री करवानी है क्योंकि किसी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन कराने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है, तो आइये समझते है इस पूरी प्रक्रिया के विषय में विस्तार से..

रजिस्ट्रेशन एक्ट (Registration Act 1908) के सेक्शन 17 के मुताबिक सभी लेनदेन, जिसमें एक अचल संपत्ति (Immovable property) की बिक्री शामिल होती है (100 रुपये से ज्यादा वैल्यू वाली) को रजिस्टर्ड कराया जाना चाहिए. इसका मतलब है कि अचल संपत्ति की बिक्री से जुड़े सभी लेनदेन को पंजीकृत कराया जाना चाहिए, क्योंकि कोई भी अचल संपत्ति 100 रुपये में तो खरीदी जा नहीं सकती. इस कानून के तहत विभिन्न दस्तावेजों का रजिस्ट्रेशन होता है ताकि सबूतों का संरक्षण, धोखाधड़ी की रोकथाम और शीर्षक (Title) सुनिश्चित हो सके.

रजिस्ट्रेशन में इन डॉक्यूमेंट्स की होगी जरूरत

अगर आपको अचल संपत्ति गिफ्ट में मिली है या फिर गैर-वसीयतनामा या लेनदेन जिसमें 100 रुपये से अधिक राशि के लिए एक अचल संपत्ति की बिक्री शामिल है, या फिर आपने किसी संपत्ति को साल दर साल के लिए अचल संपत्ति को लीज पर ली है या दी है, या फिर आपने संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53 ए में जिक्र मकसदों के लिए अचल संपत्ति को ट्रांसफर करने का कॉन्ट्रैक्ट किया है तो फिर आपको दस्तावेजों का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है.

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द इंडियन स्टैंप एक्ट एंड द रजिस्ट्रेशन एक्ट (Indian Stamp Act and Registration Act) के तहत स्टैंप ड्यूटी आती है. संपत्ति का मालिकाना हक ट्रांसफर करने के वक्त खरीददार को स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्जेज (Registration Charges) राज्य सरकार को चुकाने पड़ते हैं.

चूंकि यह राज्य का विषय है, इसलिए विभिन्न राज्यों में इसकी दरें अलग - अलग हो सकती हैं. कई राज्यों में स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस कुल लेनदेन के मूल्य के प्रतिशत के तौर पर चुकानी होती है.

शहरी क्षेत्रों के लिए राज्यों में स्टैंप ड्यूटी ज्यादा होती है. साथ ही, परिवार की संपत्तियों में महिलाओं के मालिकाना हक को बढ़ावा देने के लिए महिला घर खरीददारों को छूट भी मिलती है, तो आइये जानते है इस पूरी प्रक्रिया के विषय में विस्तार से.

दस्तावेजों का रजिस्ट्रेशन

स्टैंप ड्यूटी चुकाने के बाद दस्तावेजों को इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत कराया जाना जरूरी है. जिस इलाके में प्रॉपर्टी है, उसके न्यायिक क्षेत्र में आने वाले सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में यह प्रक्रिया पूरी होती है. दस्तावेजों के पंजीकरण का बुनियादी मकसद डॉक्युमेंट्स को अमल में लाना होता है.

जब तक सरकारी रिकॉर्ड्स में डीड खरीददार के नाम नहीं लिखी जाती, जब तक वह घर का आधिकारिक मालिक नहीं माना जाता. रजिस्ट्रेशन की एक असली कॉपी रजिस्ट्रार के पास रहती है, जिसे किसी विवाद के वक्त संदर्भित (refer) किया जा सकता है.

संपत्ति रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया क्या है

सबसे पहला कदम यह है कि हमें इलाके के सर्किल रेट्स (Circle Rates) के आधार पर अपनी संपत्ति के मूल्य का आकलन करना होता है. उसके बाद वास्तविक मूल्य के साथ सर्किल रेट्स की तुलना करनी होगी. स्टैंप ड्यूटी चुकाने के लिए वास्तविक मूल्य और सर्किल रेट्स (जो ज्यादा होगी) वह लागू होगी. दूसरा काम आपको ये करना है कि कैलकुलेशन के बाद आए मूल्य के गैर-न्याययिक दस्तावेज आपको खरीदने होंगे.

उसके बाद आप स्टैंप पेपर्स आप खुद जाकर या ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं. लाइसेंस प्राप्त वेंडरों से दस्तावेज और एक online ई-स्टैंप मिल जाएगा. स्टैंप ड्यूटी कलेक्टर ऑफ स्टैंप्स के जरिए या अगर चुका दी गई है तो उसका सबूत जमा कराना होगा.

ये सब हो जाने के बाद अब आपको स्टैंप पेपर्स पर विक्रय विलेख (Sale Deed) तैयार करानी होगी. विषय वस्तु लेनदेन की प्रकृति के मुताबिक बदलती है, जो बिक्री, लीज,गिरवी या पावर ऑफ अटॉर्नी हो सकती है.

अब लेनदेन करने वाली पार्टी को डीड रजिस्टर करने के लिए दो गवाहों को लेकर सब रजिस्ट्रार के दफ्तर जाना होगा. जो लोग इस प्रक्रिया में शामिल हैं, उनके पास फोटो, आईडी प्रूफ (Aadhar, Driving license, Ration card) इत्यादि होने चाहिए. डीड की ओरिजनल कॉपी, उसकी दो फोटोकॉपी भी साथ में लेकर जाएं. बिक्रीनामा रजिस्टर होने के बाद आपको एक रसीद मिलेगी. दो से सात दिनों के बाद दोबारा सब-रजिस्ट्रार दफ्तर जाकर आप बिक्रीनामा हासिल कर सकते हैं.

समय सीमा और फीस

जिन दस्तावेजों को अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड कराना है, उन्हें निष्पादन (Execution) के चार महीने के भीतर तय फीस के साथ जमा कराना होता है. अगर आप तय समय के भीतर तय फीस जमा नहीं कर पाते है तो आप सब रजिस्ट्रार के दफ्तर में आवेदन दायर कर अगले 4 महीने के भीतर देरी के लिए माफी मांग सकते हैं.

रजिस्ट्रार जुर्माना (जो असली रजिस्ट्रेशन फीस का 10 गुना हो सकता है) लगाकर दस्तावेजों का रजिस्ट्रेशन कर सकता है. प्रॉपर्टी की रजिस्ट्रेशन फीस संपत्ति का 1 प्रतिशत होता है. पहले रजिस्ट्रेशन के लिए लाए जाने वाले दस्तावेज आपको 6 महीने बाद दिए जाते थे, लेकिन सब-रजिस्ट्रार दफ्तरों में ऑनलाइन होने के बाद से आपको दस्तावेज उसी दिन स्कैन करके लौटा दिए जाते हैं.

मालिकाना हक साबित करना मुमकिन नहीं

अगर आपका नाम सरकारी अभिलेखों में बतौर मकान मालिक नहीं लिखा होगा, तब मालिकाना (Ownership) साबित करना मुमकिन नहीं है. इस कारण से, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन हर खरीदार के लिए अनिवार्य है.

इसके अलावा गैर-रजिस्टर्ड प्रॉपर्टीज की कोई कानूनी वैधता नहीं होती और अगर वह उसमें रह भी रहा है तो हमेशा उसे खोने का खतरा बना रहेगा. अगर कभी सरकार को कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (Infrastructure Projects) के लिए इस प्रॉपर्टी के अधिग्रहण की जरूर पड़ी तो मालिक कोई मुआवजा क्लेम नहीं कर पाएगा, जो आमतौर पर ऐसे मामलों में जमीन/प्रॉपर्टी मालिकों को दिए जाते हैं.