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ED को अपनी बात रखने का अधिकार, लेकिन पब्लिक प्रोसीक्यूटर के कार्यों को नियंत्रित नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी अभियोजकों को अदालत के अधिकारियों के रूप में स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए, साथ ही कानूनी कार्यवाही में  अदालत के अधिकारी होने के नाते अपने विवेक को बनाए रखना चाहिए.

Written by Satyam Kumar |Published : December 12, 2024 1:25 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक प्रोसीक्यूटर (Public Proseccutor) यानि सरकार के वकील और ईडी केन्द्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) के बीच मुकदमे की साझेदारी को लेकर अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक से उस आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें जांच में देरी होने पर पब्लिक प्रोसीक्यूटर को आरोपियों को जमानत का विरोध नहीं करने का निर्देश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी निदेशक के इसी रवैये पर हिदायत देते हुए कहा कि ईडी अपने मुकदमे से संबंधित बातें पब्लिक प्रोसीक्यूटर से साझा कर सकते हैं, उन्हें मुकदमे की अहम पहलु के बारे में बता सकते हैं, लेकिन वे पब्लिक प्रोसीक्यूटर को अदालत में कैसे मुकदमे को प्रजेंट करना चाहिए या क्या दलीलें देनी चाहिए, इसे लेकर आदेश जारी करने का ईडी को अधिकार नहीं है.शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया किसुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी दिल्ली वक्फ मनी लॉन्ड्रिंग मामले के दो आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान आई है.

दिल्ली वक्फ मनी लॉन्ड्रिंग मामले SC की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एसओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि सरकारी अभियोजकों को अदालत के अधिकारियों के रूप में स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए, साथ ही कानूनी कार्यवाही में  अदालत के अधिकारी होने के नाते अपने विवेक को बनाए रखना चाहिए. बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक ने सरकारी अभियोजकों (Public Prosecutor) को निर्देश जारी करते हुए कहा गया कि जब मुकदमे की कार्यवाही में देरी ईडी के कामों के चलते हुआ हो तब वे जमानत आवेदनों का विरोध नहीं करें, सुप्रीम कोर्ट ने इसी निर्देश से आपत्ति जताई है.

वक्फ बोर्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपियों को जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें दिल्ली वक्फ मनी लॉन्ड्रिंग मामले के दो आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान आई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीशान हैदर और दाउद नासिर 11 नवंबर, 2023 को गिरफ्तारी के बाद से जेल में हैं और उनके खिलाफ अब तक आरोप भी तय नहीं किए गए हैं. पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता लगभग एक वर्ष और एक महीने से हिरासत में हैं. पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत दायर शिकायत में आरोप तय नहीं किए गए हैं. शिकायत में 29 गवाहों का हवाला दिया गया है और लगभग 50 दस्तावेजों का जिक्र किया गया है जो 4,000 से अधिक पृष्ठों में हैं.

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शीर्ष अदालत ने कहा,

‘‘अब तक आरोप भी तय नहीं किए गए हैं, इसलिए मुकदमा जल्द शुरू होने की संभावना नहीं है. मामले के तथ्यों और अपीलकर्ताओं के हलफनामों एवं सेंथिल बालाजी के मामले में इस न्यायालय के फैसले के मद्देनजर... अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.’’

इसके बाद पीठ ने दोनों आरोपियों को जमानत की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए एक सप्ताह के भीतर विशेष अदालत के समक्ष पेश करने और उचित शर्तों पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया, जिसमें शीर्ष अदालत में दायर किए गए हलफनामों का अनुपालन भी शामिल है.

पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं द्वारा उसके समक्ष दायर छह दिसंबर और नौ दिसंबर, 2024 के हलफनामा रिकॉर्ड का हिस्सा होंगे और उनका अनुपालन जमानत की शर्त होगी. पीठ ने कहा कि अगर अपीलकर्ताओं की ओर से किसी कृत्य या चूक के कारण शिकायत की सुनवाई में देरी होती है, तो प्रतिवादी (ED) के लिए विशेष अदालत के समक्ष जमानत रद्द करने का आवेदन करने का मार्ग खुला होगा.

क्या है मामला?

दिल्ली वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी (आप) विधायक अमानतुल्लाह खान इस मामले में मुख्य आरोपी थे और हाल में उन्हें निचली अदालत से राहत मिली थी, जिसने उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया था. ईडी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है. हैदर और नासिर को ईडी ने नवंबर 2023 में दिल्ली वक्फ बोर्ड की भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं के मामले में गिरफ्तार किया था. यह मामला दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज कई शिकायतों और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी शुरू हुआ है.