False Information to Public Servant: भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) साल 1860 में लागू किया गया था. इस संहिता में कुल 511 धाराएं हैं जो अलग-अलग अपराधों को परिभाषित करती हैं और उनमें दिए जाने वाले दंड के प्रावधान का उल्लेख करती हैं.
भारतीय दंड संहिता की धारा 182 का शीर्षक है 'झूठी सूचना, जिसका उद्देश्य एक लोक सेवक को उसकी कानूनी शक्ति का प्रयोग करवाना है जिससे एक दूसरे शख्स को चोट पहुंचाई जा सके' (False information, with intent to cause public servant to use his lawful power to the injury of another person)।
जैसा इस धारा का शीर्षक है, एक व्यक्ति अगर किसी लोक सेवक को एक तीसरे व्यक्ति के बारे में गलत सूचना देता है जिससे वो लोक सेवक उस तीसरे इंसान पर अपनी कानूनी शक्ति का प्रयोग करे और उसको चोट पहुंचे, तो ये इस धारा के तहत एक दंडनीय अपराध है.
कोई भी शख्स अगर एक लोक सेवक को यह जानते हुए कुछ जानकारी देता है कि वो जानकारी झूठी है और इसके बारे में झूठी जानकारी वो लोक सेवक को देता है तो -
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी व्यक्ति को अगर आईपीसी की इस धारा के तहत दोषी करार दिया जाता है तो उसे जेल की सजा सुनाई जा सकती है जिसकी अवधि छह महीने तक बढ़ाई जा सकती है. इसके अलावा उसपर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है जिसकी कीमत एक हजार रुपये तक हो सकती है और ऐसा भी हो सकता है कि जेल और जुर्माना, दोषी को दोनों भुगतना पड़े.
कुछ उदाहरण
इस धारा को बेहतर समझने के लिए कुछ उदाहरण भी हैं जो इस धारा के साथ बताए गए हैं. अगर एक व्यक्ति 'A' मैजिस्ट्रेट को बताता है कि 'Z', जो कि एक पुलिस अधिकारी है, अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है; यह जानते हुए कि इस झूठी जानकारी सूचना की वजह से मैजिस्ट्रेट 'Z' को डिसमिस कर सकते हैं, तो उसे इस धारा के तहत दोषी माना जाएगा.
इसी तरह अगर 'A' एक पुलिस अधिकारी को यह झूठी जानकारी देता है कि एक पड़ोस के गांव में उसका शोषण हुआ है और उसका सामान चोरी हो गया है लेकिन यह नहीं बताता कि गांव में किसने उसके साथ यह किया है; वह जानता है कि पुलिस लगभग सभी लोगों से जांच हेतु सवाल-जवाब करेगी और कई बेगुनाह लोगों को इससे परेशानी होगी, तो भी 'A' को आईपीसी की धारा 182 के तहत सजा दी जाएगी.