नई दिल्ली: परिवार के सदस्यों के बीच अक्सर पैतृक संपत्तियों से जुड़े विवाद देखने मिलते है. खासकर बड़े परिवारों में संपत्तियों का मालिकाना हक तय करना तथा उन्हें दूसरी पीढ़ी को सौंपना थोड़ा जटिल हो जाता है. पैतृक संपत्ति को मूल्यवान माना जाता है और उससे व्यक्ति की भावनाएं भी जुड़ी होती हैं. कुछ मामलों में, पैतृक संपत्ति की वजह से परिवार जुड़ा रहता है वहीं कुछ लड़ाई झगड़े में फंसे रहते हैं. ज्यादातर विवादों की सबसे बड़ी वजह जानकारी का अभाव है. आइए जानते हैं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति से संबंधित आपके क्या अधिकार हैं.
पैतृक संपत्ति (Ancestral Property), अपने पूर्वजों से मिली संपत्ति को कहते हैं, यानि पिता, दादा या परदादा से विरासत में मिली संपत्ति. सरल शब्दों में, विरासत में मिली पिछले चार पीढ़ियों तक की संपत्ति को पैतृक संपत्ति कहा जाता है. प्रत्येक व्यक्ति का उसके पैतृक संपत्ति पर अधिकार जन्म के साथ ही स्थापित हो जाता है. यह पूर्वजों द्वारा कमाई गई संपत्ति होती है जिस पर आने वाले पीढ़ी का अधिकार माना जाता है. एक पीढ़ी के व्यक्ति की मृत्यु होने पर या वसीयत करने पर उस संपत्ति का अधिकार दूसरी पीढ़ी को मिल जाता है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 हिंदुओं के बीच विरासत कानूनों को नियंत्रित करता है. इसमें संयुक्त परिवार की संपत्ति और अलग संपत्ति दोनों के विभाजन, वितरण और विरासत के संबंध में प्रावधान शामिल हैं. यह अधिनियम, हालांकि, पैतृक संपत्ति शब्द को परिभाषित नहीं करता है. "विभाजन अधिनियम, 1893" और "नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908", संपत्ति विभाजन से संबंधित अन्य प्रासंगिक कानून हैं.
अविभाजित पुश्तैनी संपत्ति पर पुरुषों की चार पीढ़ियां अपने हक का दावा कर सकती हैं, अर्थात अगर किसी व्यक्ति की कोई संपत्ति है, तो उसपर उसकी अगली चार पीढ़ियों का अधिकार माना जाता है. पहली चार पीढ़ियों में जन्में बच्चों (बेटे और बेटियों दोनों) का पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार होता है. हालांकि, उस संपत्ति पर दावा करने की समय सीमा निश्चित है, और इस समय सीमा से पहले अपने हिस्से पर दावा करना अनिवार्य होता है.
सहदायिक (Coparceners), एक हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में 'संयुक्त वारिस' को दर्शाता है, जो हिंदू उत्तराधिकार कानूनों के तहत परिभाषित संपत्ति, शीर्षक और धन के लिए कानूनी अधिकारों को साझा करता है या यह व्यक्ति संपत्ति के बंटवारे की मांग कर सकता है. केवल सहदायिक ही पैतृक संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते हैं. संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों को भी भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है. चूंकि संयुक्त परिवार के गैर-सहदायिक सदस्यों का पैतृक संपत्ति में कोई हित नहीं होता है, इसलिए उन्हें पैतृक संपत्ति पर दावा करने का अधिकार नहीं होता.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, पहले महिलाओं का पैतृक संपत्ति पर अधिकार नहीं माना जाता था, केवल पुरुष वंशज ही संयुक्त परिवार की संपत्ति में सहदायिक हो सकते थे. हालांकि, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने अधिनियम की धारा 6 में कुछ बदलाव किए. इस संशोधन से सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिला वंशजों को भी पैतृक संपत्ति पर पुरुषों के समान अधिकार और पद प्राप्ति की अनुमति मिली. इस संशोधन से तय हुआ की बेटी की शादी के बाद भी, वह सहदायिक होगी.
2005 में, नियमानुसार, बेटी को संपत्ति का अधिकार मिलने के लिए बेटी और पिता दोनों को 9 सितंबर, 2005 तक जीवित होना जरुरी था परन्तु 2018 में इसमें बदलाव किए गये की भले ही पिता का 2005 से पहले निधन हो गया हो, उसके बाद भी बेटी संपत्ति पर अपने अधिकारों का दावा कर सकती है. अब किसी अन्य पैतृक संपत्ति के समान ही कृषि भूमि पर भी महिलाएं अपना दावा कर सकती हैं.
क्या पिता अपनी पैतृक संपत्ति बेच सकता है? इसका जवाब है, नहीं, अगर पैतृक संपत्ति अविभाजित है, तो पिता बाकी उत्तराधिकारियों, यानी अपने बच्चों की सहमति के बिना अपनी पैतृक संपत्ति बेचने के लिए अधिकृत नहीं है. अगर किसी के दो बेटे हैं और उसने अपने दोनों बेटों को संपत्ति में हिस्सा दिया तो उस पैतृक संपत्ति पर पोते का भी हिस्सा होता है. यह संपत्ति विरासत में मिली होती है और पिता इसे बिना बेटों की सहमति के नहीं बेच सकता.
कोई भी व्यक्ति पैतृक संपत्ति को बेचने के लिए अकेला हकदार नहीं हो सकता क्योंकि उस पर चार पीढ़ियों का अधिकार होता है. हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के मुखिया का संपत्ति पर अधिकार होता है और वह परिवार के बाकी सदस्यों की जगह पर संपत्ति की देखरेख कर सकता है परन्तु अगर संपत्ति को बेचना है, तो इसके लिए संपत्ति से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को संबंधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने होंगे.
अगर परिवार का कोई एक भी सदस्य असहमत होता है तो भी संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता है. किसी एक व्यक्ति की व्यक्तिगत रज़ामंदी के आधार पर पैतृक संपत्ति को नहीं बेचा जा सकता है और ना ही उसके आंशिक मालिकों के निर्णय के आधार पर बिक्री संभव है. यदि कोई व्यक्ति सबकी सहमति के बिना संपत्ति को बेचने का प्रयास करता है तो बाकी हिस्सेदार कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं और बिक्री को रोकने का अधिकार रखते हैं.