नई दिल्ली: देश में अपराध से पीड़ित लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए कानून व्यवस्था बनाई गई है ताकि लोगों को इंसाफ जल्द से जल्द मिल सके. अदालतों और लोगों के बीच अधिवक्ता एक कड़ी होती है जो अपने क्लाइंट के पक्ष को अदालत के समक्ष पेश करते हैं. क्या आप जानते हैं कि देश के सुप्रीम कोर्ट में बहस करने के लिए अधिवक्ता को एक विशेष परीक्षा से गुजरना पड़ता है, जिसे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (Advocate-on-Record) कहते हैं.
इसे जानने से पहले इस बात को समझ लें कि देश के हर राज्य के हाई कोर्ट में यह सिस्टम लागू नहीं हुआ है. कुछ गिने चुने हाई कोर्ट हैं जहां इस सिस्टम को फॉलो किया जाता है, तो आईए जानते हैं क्या है एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सिस्टम और इसके तहत कौन लोग नियुक्त होते हैं.
'एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड' सर्वोच्च न्यायालय में एक पद होता है. इस पद को प्राप्त करने के बाद ही कोई अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के समक्ष पेश हो सकता है. इसे प्राप्त करने हेतु किसी भी वकील को कोर्ट द्वारा आयोजित परीक्षाओं को पास करना होता है, साथ ही कोर्ट द्वारा तय किए गए मानदंडों को पूरा करना होता है.
2014 में, उच्चतम न्यायालय ने 1966 के नियमों को बदलकर 'उच्चतम न्यायालय नियमावली 2013' अधिसूचित किया. जो 19 अगस्त 2015 से प्रभावी हुई. इसी के तहत ये सिस्टम बनाया गया है. इनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों से आप इसे और बेहतरीन ढंग से समझ पाएंगे.
वह अधिवक्ता जो 'एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड' बन जाता है वह संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत भारत के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाए गए सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश IV (भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पहले आदेश IV, 1966) के तहत काम करने के हकदार हो जाता है. साथ ही साथ हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट में एक पक्ष की पैरवी करने के लिए हकदार हो जाता है.
ये वे अधिवक्ता होते हैं जिनके नाम अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत बनाए गए किसी भी राज्य बार काउंसिल के रोल में दर्ज होते हैं और वे किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण में किसी पक्ष की ओर से किसी भी मामले में उपस्थित हो सकते हैं और बहस कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में प्रत्येक वकील चाहे वह जूनियर हो या सीनियर हो, हर किसी लॉयर को Advocate on Record की सूची में अपना नाम पंजीकृत करना होता है. सुप्रीम कोर्ट के Lawyer/ Advocate को Advocate on Record भी कहा जाता है.
कानून की भाषा हर कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि वो जटिल होती है. इसे समझने के लिए इसके बारे में जानकारी होना जरूरी है. कई बार ऐसा होता है कि कोर्ट में गैर अनुभवी वकील अपने क्लाइंट के पक्ष को रखते हैं और कुछ गलतियां कर बैठते है जिसके कारण कोर्ट केस के रद्द कर देता है. इसके कारण क्लाइंट को काफी परेशानी होती थी. उस परेशानी को खत्म करने के लिए इस सिस्टम को बनाया गया है, इसके अलावा;
सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड पर एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड वह अधिवक्ता (वकील) होता है, जो कोर्ट के समक्ष सही, अपने अधिकार के रूप में, उपस्थित हो सकता है, वकालत कर सकता है और संबोधित कर सकता है.
अन्य अधिवक्ता (नॉन-एओआर), अगर कोर्ट को संबोधित करना चाहते हैं, तो या तो उन्हें एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की ओर से निर्देश दिया जाना चाहिए या कोर्ट की ओर से अनुमति उनके होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश IV का नियम 1, यह स्पष्ट करता है कि किसी पक्ष की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के अलावा कोई अधिवक्ता उपस्थित नहीं करेगा, पैरवी या संबोधन नहीं करेगा, जब तक कि उसे एडवोकेट-ऑन द्वारा निर्देश नहीं दिया जाता है या अदालत अनुमति नहीं देगी.
नियम 5 जो है वो एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के रूप में पंजीकृत होने की अधिवक्ता की योग्यता से जुड़ा है. अनिवार्य प्रशिक्षण, एओआर परीक्षा उत्तीर्ण करने अलावा, सुप्रीम कोर्ट से 16 किलोमीटर के दायरे में दिल्ली में उसका एक कार्यालय हो. आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
अगर आप इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लेते हैं तो आपको दो और मानदंड को पास करना होगा.
1. सुप्रीम कोर्ट में AOR बनने के लिए आपके पास दिल्ली में एक रजिस्ट्रार का दफ्तर होना अनिवार्य है. वो भी सुप्रीम कोर्ट के 16 किलोमीटर की त्रिज्या के भीतर.
2. अपना पंजीकृत क्लर्क होना चाहिए.
इन सबके बाद सुप्रीम कोर्ट का चैंबर न्यायाधीश आपको सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता Advocate On Record के रूप में स्वीकार करता हैं.
सुप्रीम कोर्ट में इस सिस्टम को पूरी तरह से लागू किया गया है लेकिन ये सिस्टम देश के सभी हाई कोर्ट में फॉलो नहीं किया जाता है. किसी- किसी राज्य में इस सिस्टम के तहत कार्य किया जाता है. कई जगह पर इस सिस्टम को लागू नहीं करने के खिलाफ याचिका भी दायर हो चुकी है, कुछ हाई कोर्ट हैं जहां इस सिस्टम के तहत काम किया जाता है.
धारा 34 (1) हाईकोर्ट को यह अधिकार देती है कि वह उन शर्तों के अधीन नियम बना सकता है, जिनके लिए एक अधिवक्ता को हाईकोर्ट और न्यायालयों के अधीनस्थ प्रैक्टिस करने की अनुमति होगी. अलग- अलग राज्यों के हाई कोर्ट में एडवोकेट- ऑन- रिकॉर्ड के नियम;
2009 में, पटना हाईकोर्ट ने अधिवक्ताओं को एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के रूप में पंजीकरण के लिए नियम पेश किए गए थे. जिसमें यह निर्धारित किया गया कि, एक वकील पटना हाई कोर्ट में किसी भी तरीके से प्रैक्टिस करने का हकदार तब तक नहीं होगा, जब तक कि वह हाईकोर्ट द्वारा संचालित परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर लेता और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं करता है.
एओआर परीक्षा के लिए आवेदक के पास निम्नलिखित मानदंडों को पास करना अनिर्वाय होगा:
a) पटना में एक कार्यालय होना चाहिए
b) एक पंजीकृत एडवोकेट्स क्लर्क होना चाहिए
c) एक एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, जिसकी कम से कम दस वर्ष की प्रैक्टिस का रिकॉर्ड हो, के साथ कम से कम एक साल की इंटर्नशिप हो, और
d) रोल पर आने के बाद कम से कम तीन साल की अवधि पूरी कर चुका हो.
मद्रास हाईकोर्ट की एओआर सिस्टम लागू करने की योजना
2015 में, ऐसी खबरें आई थीं कि मद्रास हाईकोर्ट 'एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड' सिस्टम शुरू करने की योजना बना रहा है. हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एक रिट याचिका पर विचार करते हुए कहा था कि उसके पास अनुच्छेद 225 और 226 के तहत, अधिवक्ता अधिनियम की धारा 34 के आलावा, सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013, जैसे नियमों को लागू करने की शक्ति है.