नई दिल्ली: संविदा एक ऐसा समझौता है जो दो या दो से अधिक परस्पर सहमत पक्षों से संबंधित कुछ कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकारों और दायित्वों को बताता है, और ऐसी स्थिति को ठहराव कहा जाता है।
भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act) में ठहराव की अपनी अहम भूमिका होती है, क्योंकि ठहराव ही किसी अनुबंध का आधारभूत स्तंभ होता हैं। इसके अनुसार एक ठहराव का होना बहुत ही जरुरी होता है, इसके बारे में आइये जानते है विस्तार से।
जो करार विधिताः प्रवर्तनीय हो संविदा है। बहुत कम शब्दों में यहां संविदा की परिभाषा बताई गयी है।
साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कोई भी करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय (Enforceable by Law) हो मतलब जिसे न्यायालय में जाकर लागू कराया जा सकता हो ऐसा करार संविदा होता है। अतः किसी करार को संविदा होने के लिए विधि का बल रखना चाहिए, क्योंकि यह देखा गया है कि कोई संविदा प्रवर्तनीय नहीं हो सकती यदि वह मर्यादा विधि द्वारा बाधित है, तो उसे अप्रवर्तनीय संविदा कहते हैं।
यह हर एक मामले से संबंधित विशिष्ट परिस्थितियों और तथ्यों पर आधारित होता है। कोई भी ऐसा नियम जिसके कारण संविदा को न्यायालय में परिवर्तित नहीं कराया जा सकता ऐसी परिस्थिति में करार संविदा नहीं हो पाता है। जब करार वैध (Valid) होता है और विधि द्वारा उसे प्रवर्तनीय कराया जा सकता हो तो वह संविदा बनता है ।
जैसे कि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति से घर बेचने का करार किया अब यदि ऐसा घर बेच पाना विधि द्वारा प्रवर्तनीय हैं तो यह करार संविदा हो जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत करार की परिभाषा भले ही छोटी है परंतु यह परिभाषा बहुत गहरे अर्थ रखती है।
जब संविदा करने के लिए सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सम्मति से किसी विधिपूर्ण प्रतिफल (Lawful Considerations) के लिए और किसी विधि पूर्ण उद्देश्य से किए गए हैं और साथ ही इसके द्वारा अभिव्यक्त शून्य घोषित नहीं किए गए हैं।
जिसका मतलब है कि स्वीकृति के बाद कोई भी प्रस्ताव एक समझौता है। समझौते कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे नैतिक (Moral), धार्मिक, कानूनी या सामाजिक समझौते। जब आप किसी मित्र को रात के खाने के लिए आमंत्रित करते हैं या अपना लुई वीटोन हैंडबैग किसी को उधार देते हैं या कोई व्यावसायिक निर्णय लेते हैं, तो आप किसी प्रकार का समझौता कर रहे होते हैं।
एक कानूनी दायित्व बनाने के इरादे से एक प्रस्ताव दिया जाता है, तो यह संविदा में प्रवेश करने का प्रस्ताव बन जाता है। इस प्रकार एक समझौता एक संविदा बन जाता है, जब पक्षों की स्वतंत्र सहमति, संविदा करने के लिए पक्षों की क्षमता, वैध प्रतिफल और वैध उद्देश्य या विषय वस्तु (Indian Contract Act Section 10) होती है।
संविदा बनने के लिए एक समझौते के लिए एक कानूनी दायित्व का होना बहुत जरुरी है और यदि यह ऐसा करने में असमर्थ है, तो यह संविदा नहीं है। यह एक समझौते को एक संविदा की तुलना में एक व्यापक शब्द बनाता है।
Indian Contract Act कि धारा 15 कहती जब पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति होती है या जब जबरदस्ती या जब अनुचित प्रभाव (धारा 16), धोखाधड़ी (धारा 17), गलत बयानी (धारा 18) और गलती (धारा 20, 21, 22) का अभाव हो, तो स्वतंत्र सहमति कहा जाता है।
Capacity to do Contract: धारा 11 और 12 में कहा गया है कि सक्षम पक्ष वे व्यक्ति हैं, जिन्होंने बहुमत (majority) प्राप्त कर लिया है , जो मानसिक रुप से स्वस्थ हैं और ऐसे व्यक्ति जो कानून द्वारा अयोग्य नहीं हैं।
Lawful Consideration and Lawful Object Section 23: इसमें कहा गया है कि प्रतिफल और उद्देश्य तब तक वैध है, जब तक कि यह कानून द्वारा निषिद्ध (forbidden) नहीं होता है या यह किसी कानून के प्रावधानों के विरुद्ध होता है या धोखाधड़ी से होता है या व्यक्ति या संपत्ति को चोट पहुंचाता है या सार्वजनिक स्वास्थ्य, नैतिकता, शांति और आदेश का उल्लंघन करता है।
Mr Balfour ने अपनी पत्नी को 30 पाउंड/ माह का भुगतान करने का वादा किया क्योंकि वह चिकित्सा कारणों से इंग्लैंड में रही थी। जब वह भुगतान करने में विफल रहा, तो Mrs Balfour ने उस पर मुकदमा कर दिया। उसकी कार्रवाई विफल रही क्योंकि Mr & Mrs. Balfour के बीच कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता करने का कोई इरादा नहीं था।
संविदा के पक्षकारों के कानूनी अधिकारों और दायित्वों के बारे में उचित संकेत के बिना संविदा नहीं किया जा सकता है। इसलिए, यदि यह एक संविदा होता, तो पत्नी को भुगतान प्राप्त करने का अधिकार होता और पति पर अपनी पत्नी को भुगतान करने का दायित्व होता।