नई दिल्ली: किसी भी केस में सबूत और गवाह अहम होते हैं. इसलिए कानून में सबूतों और गवाहों से संबंधित कई प्रावधान किए गए हैं. किसी से गवाही कैसे ली जाती है अदालत में, किस गवाह का कब प्रयोग कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं इसके बारे में पूरी प्रक्रिया निर्धारित की गई है. पुलिस द्वारा गवाहों के परीक्षण के बारे में सीआरपीसी के कई धाराओं में बताया गया है.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (Code Of Criminal Procedure - CrPC) 1973 की धारा 161 और धारा 162 पुलिस द्वारा गवाहों के परीक्षण से संबंधित है. ये धाराएं पुलिस को जब भी जरूरत हो गवाहों की जांच करने और उनकी सुविधा के अनुसार उनके बयान दर्ज करने की पूरी शक्ति देती है.
इस धारा को कई उपधाराओं में बांटा गया है. इसमें पुलिस द्वारा गवाहों के परीक्षण के बारे में बताया गया है.
1. इस धारा के तहत जांच करने वाला कोई भी पुलिस अधिकारी, या उस जांच अधिकारी के आदेश पर कार्य करने वाला कोई भी पुलिस अधिकारी जो इस तरह के रैंक से नीचे का नहीं है, जैसा कि राज्य सरकार सामान्य या विशेष आदेश द्वारा निर्धारित कर सकती है, ऐसे अधिकारी की मांग पर कार्रवाई करते हुए, मौखिक रूप से किसी भी उस व्यक्ति की जांच कर सकता है जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हों.
2. ऐसा व्यक्ति, अधिकारी द्वारा मामले से संबंधित पूछे गए सभी सवालों का सही जवाब देने के लिए बाध्य होगा. भले ही उन सवालों के जवाब देने पर वो शक के दायरे में ही क्यों ना आ जाए.
3. पुलिस अधिकारी इस धारा के तहत एक परीक्षण के दौरान उसे दिए गए किसी भी बयान को लिखित रूप तैयार कर सकता है; और यदि वह ऐसा करता है, तो वह प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के कथन का एक अलग और सही -सही अभिलेख बनाएगा जिसका कथन वह लिख रहा हो. उसमें कोई अपनी राय को शामिल नहीं कर सकता है.
लक्ष्मण कालू बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1968
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब एक व्यक्ति जिसका बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया है, उसकी अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में नहीं बल्कि बचाव पक्ष के गवाह के रूप में जांच की जाती है, सीआरपीसी की धारा 162(1) का प्रावधान बिल्कुल भी लागू नहीं होता है, और अभियोजन पक्ष को धारा 161 के तहत परीक्षण के दौरान दर्ज किए गए अपने पिछले बयान के साथ बचाव पक्ष के गवाह का सामना करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
1.इस धारा के अनुसार किसी आपराधिक मामले की जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति के द्वारा जांच अधिकारी को दिए गए बयान को केवल लेखबद्ध किया जा सकता है लेकिन उस व्यक्ति से हस्ताक्षर लिया जाएगा. इसके अलावा उस बयान का इस्तेमाल चाहे वह पुलिस डायरी में हो या ना हो किसी भी जांच या सुनवाई में नहीं किया जाएगा.
लेकिन जब गवाह को अदालत में अभियोजन (Prosecution) की ओर से बुलाया जाता है और वह अपने बयान से मुकर जाता है
जैसे- राम ने पुलिस के सामने कहा कि उसने श्याम को रमेश की हत्या करते हुए देखा था लेकिन अदालत में राम अपने बयान से मुकर जाता है तो ऐसे में जांच अधिकारी उसके द्वारा दिए गए अभिलेख का प्रयोग भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 145 के तहत कर सकते हैं.
निम्नलिखित परिस्थितियों में धारा 162 लागू नहीं होगी;
1.यदि ऐसा कथन पुलिस अधिकारी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को दिया जाए या,
2.किसी पुलिस अधिकारी को अन्वेषण के दौरान नहीं दिया जाए,
3. या, ऐसा कथन पुलिस अधिकारी को अन्वेषण के दौरान दिया गया है परंतु वह ऐसे अधिकारी द्वारा लिखित में रिकॉर्ड नहीं किया गया है.