नई दिल्ली: दिसंबर 2021 में परमेश्वर धागे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में बेहद महत्वूपर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि किसी महिला की सहमति के बिना उसके शरीर के किसी भी हिस्से को छूना, विशेष रूप से रात में किसी अजनबी द्वारा छूना, भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दंडनीय अपराध है और यह महिला का शील भंग करने के बराबर है.
जस्टिस एमजी सेवलीकर ने इस मामले में आरोपी परमेश्वर धागे की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया था, जिसे मुंबई की एक निचली अदालत ने बिना सहमति के एक महिला के पैर छूने पर एक साल की जेल की सजा सुनवाई गई थी.
निचली अदालत ने मामले में आरोपी को धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी ठहराते हुए एक साल जेल की सजा सुनाई थी. निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि “किसी महिला की सहमति के बिना उसके शरीर के किसी हिस्से को छूना, वह भी रात के समय और किसी अजनबी द्वारा, एक महिला की मर्यादा का उल्लंघन है.”
इस मामले में अपील का निस्तारण करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी कहा था कि “आरोपित पीड़िता के चरणों में उसकी खाट पर बैठा था और उसके पैर छू रहा था जबकि वह सो रही थी, इस व्यवहार से यौन मंशा की बू आती है. जिससे पीड़ित महिला शील भंग हुआ है.
आईपीसी के तहत शील को संयम और सरलता के रूप में परिभाषित किया है. शील महिलाओं की वो भावना है जो एक महिला होने के नाते वो महसूस करती है.
कानून के मुताबिक किसी महिला का शील / लज्जा भंग करना एक गंभीर अपराध है. इस अपराध को केवल शारीरिक रूप से ही अंजाम नहीं दिया जाता बल्कि इसे मौखिक या गैर मौखिक व्यवहार के जरिये भी अपराध को अंजाम दिया जाता है. जिसका उद्देश्य होता है महिलाओं को आहत करना.
लज्जा केवल शारीरिक शील तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नैतिक और मनोवैज्ञानिक शील भी शामिल है. एक महिला की नैतिक शील को शर्म या शील की भावना कहा जाता है. जो एक महिला महसूस करती है. एक महिला की मनोवैज्ञानिक शील को उसके स्वाभिमान और गरिमा की सहज भावना कहा जाता है.
एक महिला या एक लड़की चाहे जो भी कपड़े पहने वो कहीं भी जाए वो यही चाहती हैं कि कोई भी उन्हे गंदी नजरों से ना देखे, कोई उन्हें गलत तरीके से उसकी मर्जी के बिना हाथ ना लगाए, या कोई गंदे इशारे ना करें या उसका कोई पीछा ना करें या कोई भी ऐसा काम ना करें जिससे उनकी इज्जत पर आंच आए या उन्हें तकलीफ हो, मानसिक रूप से प्रताड़ित हो जिससे वो खुद वो अपमानित महसूस करें.
अगर कोई व्यक्ति उन्हे गंदी नजरों से देखता है, गलत जगह पर टच करता है उनकी मर्जी के बिना जिससे कोई महिला आहत होती है और जिससे वह अपनी इज्जत के साथ खिलवाड़ होना महसूस करती है तो उसे शील भंग कहलाता है जो कि एक दंडनीय अपराध है.
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354 के अनुसार शील भंग करना एक गंभीर अपराध है. इस तरह के अपराध को संज्ञेय, गैर - जमानती और गैर शमनीय माना जाता है.
अगर कोई व्यक्ति किसी महिला पर हमला करता है या अपराधिक बल का उपयोग करता है, अपमान करने का इरादा रखता है या यह जानता है कि वह महिला की शील को भंग कर देगा तो उसे दोषी माना जाएगा.
यह अपराध साबित होने पर अदालत अपने विवेक के अनुसार अपराधी को 1 साल से लेकर 5 साल तक जेल की सजा सुना सकती है और जुर्माना भी लगा सकती है.
इस अपराध के लिए केवल कारावास और जुर्माने की ही सजा नहीं दी जाती है बल्कि अदालत अगर चाहे तो उसके पास यह अधिकार है कि दोषी को अतिरिक्त दंड दे सकता है जैसे- सामुदायिक सेवा, परामर्श और पुनर्वास कार्यक्रम. बार बार अपराध करने या गंभीर परिस्थितियों के मामलों में अदालत कड़ी सजा दे सकती है.
आईपीसी की धारा 509 के अनुसार जो कोई भी किसी स्त्री की लज्जा यानि शील का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्वनि निकालेगा, या कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा, वह दोषी माना जाएगा.
जी हां, अगर किसी महिला या लड़की को देखकर कोई सीटी बजाकर उस महिला या लड़की का अपमान करता है तो अपराध साबित होने पर उसे 3 वर्ष तक साधाराण कारावास के तहत जेल की सजा भी हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.