Rajasthan High Court: राजस्थान हाईकोर्ट ने शील भंग से जुड़े एक मामले में 'अटेम्प्ट टू रेप' के तहत सजा पाए व्यक्ति को राहत दी है. व्यक्ति पर 'एक नाबालिग बच्ची के इनरवियर उतारने' का आरोप लगा और ये भी कहा गया कि ऐसा करते वक्त आरोपी ने खुद के कपड़े भी उतारे थे. सेशन कोर्ट ने इन हरकतों के चलते आरोपी व्यक्ति को 'अटेम्प्ट टू रेप' का दोषी मानते हुए सजा दी. अब राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए कहा कि सेक्शन 354 (शील भंग करने का प्रयास) से जुड़े मामले में सेक्शन 376 (रेप से जुड़ा मामला) के तहत अपराध नहीं बनता है, लेकिन व्यक्ति को शील भंग करने के प्रयास के आरोप को बरकरार रखा है.
अदालत ने ये भी पाया कि आरोपी व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट से सजा सुनाने के दौरान करीब ढ़ाई साल जेल में रहा है, जिसके चलते राजस्थान हाईकोर्ट ने समयावधि में लंबे अंतराल को देखते हुए व्यक्ति को दोबारा से जेल भेजने से इंकार किया है.
राजस्थान हाईकोर्ट में, जस्टिस अनूप कुमार ढांड की बेंच ने आरोपी की याचिका सुनी. मामले में मौजूदा परिस्थितियों और हालातों पर विचार करते हुए आरोपी को राहत दी है. बेंच ने देखा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को सेक्शन 354 के मामले में 'अटेम्प्ट टू रेप' का दोषी पाया है, साथ ही उसे तीन साल की सजा सुनाई थी जिसमें से उसने करीब ढ़ाई साल जेल में गुजारी है.
अदालत ने घटना 1991 की है. 33 साल होने के बाद आरोपी के अंदर काफी बदलाव हो चुके होंगे, जिसे देखते हुए अदालत ने आरोपी को दोबारा से जेल भेजने से इंकार किया है.
अदालत ने अपने फैसले के दौरान उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया.
अदालत ने कहा,
साल 1996 में, ठीक इसी तरह के मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट ने आरोपी को रेप का दोषी मानने से इंकार किया था. आरोपी ने महिला की साड़ी उतारने का प्रयास किया लेकिन हो-हल्ला होने के बाद वह घटनास्थल से भाग गया. इस मामले में भी पीड़िता से शारीरिक संबंध बनने के चिन्ह नहीं मौजूद थे. हालांकि व्यक्ति का कृत्य निंदनीय था लेकिन सेक्शन 376/511 के तहत अपराध को आकर्षित नहीं करता था.
हालांकि, अदालत ने माना कि व्यक्ति के खिलाफ महिला का शील भंग करने मामला बनता है, लेकिन वह अटेम्प्ट टू रेप को आकर्षित नहीं करता है.