हाल ही में बीमा कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से इंश्योरेंस कॉन्ट्रेक्ट मामले में बड़ा झटका मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि अनुबंध की कोई शर्त पूरी करना असंभव हो तो बीमा कंपनी उस शर्त के उल्लंघन के आधार पर दावा (Insurance Claim) अस्वीकार नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में यह तय करना था कि "क्या बीमा कंपनी किसी अनुबंध की शर्त के उल्लंघन के आधार पर दावा अस्वीकार कर सकती है यदि वह शर्त पूरी करना असंभव हो." सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने बीमित व्यक्ति के समुद्री दावे को बरकरार रखते हुए कहा कि बीमा कंपनी व्यक्ति का दावा अस्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि यात्रा मानसून के दौरान निर्धारित थी और बीमा के उस विशेष को शर्त पूरा करना असंभव था. इस मामले में बीमा कंपनी ने अपीलकर्ता का दावा अस्वीकार करते हुए कहा था कि बीमित व्यक्ति (अपीलकर्ता) ने एक शर्त का उल्लंघन किया है, जिसकेअनुसार यात्रा मानसून शुरू होने से पहले शुरू और पूरी हो जानी चाहिए थी, जबकि पूरी यात्रा मानसून के मौसम में ही निर्धारित थी.
मामले में अपीलकर्ता एक शिपिंग व्यवसाय में लगा हुआ है और उसके कार्यालय सौगोर रोड कुलपी, डायमंड हार्बर, हल्दिया और कोलकाता में हैं. अपीलकर्ता ने एक नया बना हुआ जहाज 'श्रीजॉय II' खरीदा और मुंबई से कोलकाता तक अपनी पहली यात्रा करने का प्रयास किया. जहाज 'श्रीजॉय II' का बीमा प्रतिवादी इश्योंरेंस कंपनी के साथ 16 मई, 2013 से 15 जून, 2013 तक की अवधि के लिए किया गया था. बीमा अनुबंध (Bond Contract) में एक विशेष शर्त यह थी कि यात्रा मानसून शुरू होने से पहले शुरू होनी और पूरी होनी चाहिए थी. इसमें यह भी शर्त थी कि जहाज स्थानीय मौसम की स्थिति में, बीफोर्ट स्केल संख्या 4 (Beaufort Scale No. 4) से अधिक नहीं होने पर, प्रस्थान करेगा. भारतीय शिपिंग रजिस्टर ने अपीलकर्ता को यात्रा करने की अनुमति दी और इसके बाद, डायरेक्टर जनरल ऑफ शिपिंग ने भी 'कोई आपत्ति नहीं' जारी की. अंततः, जहाज 'श्रीजॉय II ने 6 जून 2013 को अपनी यात्रा शुरू की, लेकिन अगले ही दिन, खराब मौसम और इंजन की खराबी के कारण, यह रत्नागिरी बंदरगाह के पास लंगर डाल दिया गया और अंत में जहाज ज़मीन पर आ गया.
अपीलकर्ता ने बीमा कंपनी से सहायता मांगी, लेकिन बीमा अनुबंध की अवधि समाप्त हो चुकी थी. 25 जुलाई 2013 को, अपीलकर्ता ने बीमा कंपनी को 'परित्याग की सूचना' जारी की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि मरम्मत की लागत बीमित राशि से अधिक होगी. 12 सितंबर 2013 को, बीमा कंपनी ने अपीलकर्ता के दावे को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यात्रा मानसून के शुरू होने के बाद की गई थी, जिससे बीमा अनुबंध की शर्तें उल्लंघित हुईं. इसके बाद, बीमा कंपनी के सर्वेयर ने अंतिम रिपोर्ट जारी की, जिसमें अपीलकर्ता पर जानबूझकर शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया. बीमा कंपनी ने दावा इस आधार पर खारिज कर दिया कि जहाज मानसून शुरू होने के बाद रवाना हुआ था, जो बीमा अनुबंध की एक विशेष शर्त का उल्लंघन था. कंपनी का मानना था कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर शर्तों का उल्लंघन किया. बीमा दावे के खारिज होने से अपीलकर्ता नेराष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में शिकायत दर्ज कराई. NCDRC ने यह मानते हुए अपीलकर्ता का दावा खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता ने बीमा कंपनी से सभी योजनाओं का खुलासा नहीं किया और उसने सद्भावपूर्वक व्यवहार नहीं किया. यानी, अपीलकर्ता ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया.
अपीलकर्ता ने एनसीडीआरसी के फैसले को कानून के विरुद्ध बताते हुए रद्द करने का अनुरोध किया. इसके लिए अपीलकर्ता ने मुख्य तर्क दिया कि प्रतिवादी को पता था या पता होना चाहिए था कि पॉलिसी अवधि में खराब मौसम की अवधि भी शामिल है, इसलिए इस आधार पर पॉलिसी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता. अपीलकर्ता ने आगे कहा कि बीमा अनुबंध में निहित विशेष शर्त गैर-महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रतिवादी को पता था कि यात्रा खराब मौसम में की जानी है. इसके अलावा, अगर विशेष शर्त को ध्यान में रखा जाता है, तो अनुबंध में प्रवेश के समय इसका निहित त्याग हो गया है क्योंकि 1 महीने की बीमा अवधि में खराब मौसम की अवधि भी शामिल है, और प्रतिवादी को पता था कि जहाज मुंबई से कोलकाता होते हुए केरल से यात्रा करेगा, जहां मानसून 1 जून को शुरू होता है.
अब सुप्रीम कोर्ट ने NCDRC के फैसले को रद्द करते हुए बीमा कंपनी को अपीलकर्ता को भुगतान करने के निर्देश दिए हैं.