लॉटरी डिस्ट्रीब्यूटर्स से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि लॉटरी डिस्ट्रीब्यूटर्स, केन्द्र सरकार को सर्विस टैक्स देने के लिए बाध्य नहीं है. लॉटरी वितरक (Lottery Distributors) संविधान की प्रविष्टि II, राज्य सूची की प्रविष्टि 62 के अनुसार जुआ कर का भुगतान करना जारी रखेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि लॉटरी गतिविधि, सट्टेबाजी और जुआ के अंतर्गत अंदर आता है, जो कि संविधान में राज्य सूची का हिस्सा है, इसलिए लॉटरी विचरक पर केवल राज्य सरकारों को ही कर लगाने की अनुमति दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ संघ सरकार द्वारा दायर अपीलों को खारिज किया है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने कहा कि लॉटरी वितरक और सिक्किम राज्य के बीच संबंध प्रमुख-प्रमुख है, न कि प्रमुख से एजेंसी का. चूंकि इस संबंध में कोई एजेंसी नहीं है, इसलिए लॉटरी वितरक राज्य सरकार को कोई सेवा नहीं दे रहे हैं. यह निर्णय 2024 में आए के. अरुमुगम बनाम भारत संघ के फैसले के समान है, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा लॉटरी टिकटों की बिक्री सेवा नहीं है, बल्कि अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने की गतिविधि है. इसलिए, थोक लॉटरी खरीदार राज्य द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
"चूंकि कोई एजेंसी नहीं है, इसलिए राज्य सरकार को लॉटरी टिकटों के खरीदारों और सिक्किम सरकार के बीच के लेनदेन पर सेवा कर लागू नहीं किया जा सकता."
हालांकि, वितरक राज्य द्वारा प्रविष्टि 62 के तहत लगाए गए जुआ कर का भुगतान करते रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया कि लॉटरी "बेटिंग और जुआ" के अंतर्गत आती है, और इसलिए केवल राज्य सरकार ही इस पर कर लगा सकती है.
केन्द्र सरकार ने वित्त अधिनियम, 2010 में की धारा 65 में एक उपधारा (zzzzn) जोड़ा, जो लॉटरी सहित संभावना के खेल (Game Of Chance) के आयोजन, विपणन और सहायता करने की गतिविधियों को कर योग्य सेवा की नई श्रेणी के रूप में पेश करता है. इस प्रावधान को निजी कंपनियों द्वारा चुनौती दी गई, जो सिक्किम सरकार द्वारा आयोजित कागजी और ऑनलाइन लॉटरी टिकटों की बिक्री में संलग्न हैं. कंपनियों ने दावा किया 'लॉटरी' बेटिंग और गैम्बलिंग की केटेगरी में आता है, जो कि राज्य सूची का हिस्सा है. इसलिए, संसद को इस संबंध में कोई कर लगाने का अधिकार नहीं है. मामला सिक्किम हाई कोर्ट के पास पहुंचा.
हाई कोर्ट ने कहा कि लॉटरी वितरकों की गतिविधियां सेवा नहीं हैं, इस प्रकार, यह कर योग्य सेवा के दायरे से बाहर है. अदालत ने यह भी कहा कि लॉटरी का आयोजन "बेटिंग और जुआ" के श्रेणी में आता है और केवल राज्य विधानमंडल इस पर कर लगा सकता है. केन्द्र सरकार ने इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.