नई दिल्ली: आपराधिक मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा छोटे मामलों में भी वारंट मामलों की तरह विचारण नहीं किया जाता है, इससे न्यायालय में मामलों की अधिकता बढ़ती है, छोटे-छोटे मामलों से भी न्यायालय में प्रकरणों की भरमार हो जाती है।
इस समस्या से निपटने के लिए शीघ्रता से न्याय की प्रक्रिया को निपटाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 21 के तहत एक अभूतपूर्व उपबंध संक्षिप्त विचारण (Summary Trial) को रखा गया है। इस अध्याय में धारा 260 से लेकर धारा 265 तक संक्षिप्त विचारण के संबंध में प्रक्रिया को बताया गया है। इसके अंतर्गत अपनाई जाने वाली जांच की प्रक्रिया छोटे प्रकृति की होती है। आइये जानते हैं इसके विषय में विस्तार से -
इसके अनुसार संक्षिप्त विचारण के लिए वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो समन मामलों के लिए बताई गयी है। संक्षिप्त विचारण के अंत में मजिस्ट्रेट अभियुक्त के अभिवचन (pleading) को अभिलिखित (Recording) करता है। इसमें औपचारिक रूप से आरोप तय नहीं किया जाता है और यदि अर्थदंड (penalty) ₹200 से अधिक न हो तो अपील का भी प्रावधान नहीं है।
सामान्यतः संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया ऐसे अपराधों के मामले में अपनायी जाती है जो 2 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय नहीं है। यह प्रक्रिया कुछ निश्चित और विशिष्ट मामलों के लिए अपनायी जाती है जिनका उल्लेख धारा 260 उपधारा (1) के उपखंड में किया गया है। पहला जो कि 2 वर्ष तक के कारावास से दंडनीय अपराध हो एंव दूसरा वह अपराध जो आईपीसी की धारा 379, 380 तथा 381 के अधीन चोरी का है और चुराई हुई संपत्ति का मूल्य ₹2000 से अधिक का न हो ।
आईपीसी कि धारा 411 के अधीन चोरी की संपत्ति को प्राप्त करना, उसे रखे रखना अपराध है। इस अपराध का विचारण संक्षिप्त किया जा सकता है परंतु यहां शर्त यह है कि संपत्ति का मूल्य ₹2000 से अधिक नहीं होना चाहिए। धारा 454 और 456 जिसमें अपराध की नीयत से घर में घुसने को अपराध बताया गया है। इस अपराध का विचारण संक्षिप्त किया जाएगा।
और इसके साथ हि भारतीय दंड संहिता की धारा 504 जो लोकशांति भंग करने के आशय से किसी व्यक्ति का अपमान करना धारा 506 के अधीन आपराधिक अभित्रास (धमकी) देने का अपराध है। उसका विचारण संक्षिप्त किया जाएगा।
इसके तहत छोटे मामलों को शीघ्रता से निपटाया जा सकता है तथा शीघ्र एवं सहज न्याय छोटे मामलों में हो सकता है। इस तरह के प्रावधान से न्यायिक प्रक्रिया पर भार भी कम होता है। न्यायालय में मामलों की संख्या कम होती है तथा न्यायाधीशों को न्याय की लंबी प्रक्रिया करना होती है। धन भी कम खर्च होता है क्योंकि जितनी धीमे न्याय की प्रक्रिया होती है राज्य का उतना ही धन नष्ट होता है।
संक्षिप्त विचारण का महत्व इसलिए है क्योंकि राज्य, न्यायपालिका एंव जनसाधारण तीनों को लाभ दे रहा है। आम जनता को संक्षिप्त विचारण से शीघ्र न्याय प्राप्त हो जाता है। पीड़ित पक्षकार तथा अभियुक्त दोनों को संक्षिप्त विचारण से शीघ्र राहत हो जाती है। किसी भी छोटे अपराध को धीमे विचारण से गुजारना न्याय हित में ठीक मालूम नहीं होता है। आज भारत में अनेको छोटे-छोटे मामले संक्षिप्त विचारण के माध्यम से निपटाएं जा रहे हैं।
CrPC Section 262 के तहत संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया बतायी गयी है। इसके अनुसार संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया वही होती है जो कि समन मामलों के विचारणों में अपनायी जाती हैं। वैसे ही प्रक्रिया संक्षिप्त के मामलों में अपनायी जाती है। यदि सुनवाई कर लेने के बाद मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि मामला समन विचारण की तरह विचार किया जाना चाहिए तो वह केस को समन मामलों कि प्रक्रिया के आधार पर उसका विचारण करेगा। संक्षिप्त विचारण में दंड दंड प्रक्रिया संहिता के तहत संक्षिप्त विचारण में दिए जाने वाले दंड की अवधि तय की गयी है।
धारा 262 की उपधारा 2 में यह बताया गया है कि किसी भी संक्षिप्त विचारण के अंतर्गत 3 माह से अधिक का कारावास नहीं दिया जाएगा तथा इसके अंदर जुर्माना किया जा सकता है। यदि जुर्माने का भुगतान सही समय पर नहीं किया जाता है तो जुर्माने के भुगतान नहीं किए जाने के परिणाम स्वरूप जो कारावास दिया जाएगा वह अतिरिक्त कारावास होगा, दंड प्रक्रिया संहिता में इसके लिए तीन माह के कारावास का प्रावधान किया गया है यह कारावास अतिरिक्त है। जुर्माना नहीं देने पर कारावास की अलग सजा सुनाई जाएगी।