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रिलेशनशिप के दौरान बना शारीरिक संबंध! क्या ब्रेकअप होने पर Rape Case किया जा सकता है? जानें प्रशांत बनाम दिल्ली राज्य मामले में SC का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सहमति से बने रिश्ते अगर खत्म हो जाते हैं तो आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है.

Written by Satyam Kumar |Published : November 23, 2024 12:59 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक बलात्कार मामले को रद्द करते हुए रिलेशनशिप के दौरान बने शारीरिक संबंध को लेकर अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिलेशनशिप के दौरान सहमति से बने संबंधों के आधार पर बलात्कार का मुकदमा (Rape Case) जारी रखना केवल इसलिए उचित नहीं है क्योंकि यह रिश्ता विवाह में नहीं बदल पाया. सुप्रीम कोर्ट ने यह पाते हुए कि दोनों पक्षों ने अलग-अलग शादी कर ली है, मुकदमा रद्द करने का आदेश दिया है.

सहमति से बना संबंध अपराध नहीं!

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह ने बार-बार बलात्कार और अपराधिक धमकी से जुड़े अपील मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

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'सहमति से अलग होने पर आपराधिक कार्यवाही नहीं शुरू की जा सकती, जो रिश्ता सहमति से शुरू हुआ था उसे सिर्फ इसलिए आपराधिक नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि वह शादी में नहीं बदल पाया."

सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों पर गौर करते हुए कहा कि दोनों पक्ष अपने-अपने जीवन में आगे बढ़ चुके हैं, इसलिए मुकदमा को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा. सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों पर जोर देकर का कहा कि पीड़िता ने दावा किया कि अपीलकर्ता (युवक) ने उसे डरा-धमकाकर पहली बार संबंध 2019 में बनाया था, लेकिन उस वक्त पीड़िता ने शिकायत दर्ज नहीं कराई. उसने शिकायत नवंबर 2019 में दर्ज करवाया, जबकि साल 2017 से 2019 के बीच में दोनों पार्टी साथ में कई बार मिल चुके थे. शिकायतकर्ता की अपीलकर्ता के साथ लगातार मुलाकातें और लंबे समय तक उसके साथ रहना उसकी स्वैच्छिक सहमति के बिना असंभव सा प्रतीत होता है.

साथ ही आवेदक के लिए शिकायतकर्ता का निवास पता जानना असंभव था, जब तक कि यह जानकारी स्वयं शिकायतकर्ता द्वारा स्वेच्छा से प्रदान नहीं की गई. यह सही है कि एक समय पर दोनों पक्षों के विवाह की योजना थी, जो अंततः सफल नहीं हो पाई, लेकिन यहां इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आवेदक (युवक) और शिकायतकर्ता (युवती) के बीच एक सहमति संबंध (Consensual Relationship) बना था. दोनों पढ़े-लिखे और व्यस्क भी थे. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अपीलकर्ता ने साल 2019 में शादी कर ली थी, संभवत: जिससे नाराज होकर युवती ने शिकायत दर्ज कराई हो, लेकिन तब तक दोनों के बीच संबंधमआपसी सहमति से बने थे.

क्या है मामला?

29 नवंबर 2019 के दिन युवती ने अपने प्रेमी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)n बलात्कार और धारा 506 (अपराधिक धमकी) के तहत FIR कराई. रोहिणी साउथ थाने में पीड़िता शिकायत लिखाते वक्त दावा किया कि वह वोडाफोन कॉल सेंटर में काम करती थी, जहां 2017 में एक सर्विस कॉल के दौरान उसकी बात आरोपी से हुई. वे एक-दूसरे से तीन बार मिले, नवंबर 2017, अप्रैल 2018 और जनवरी 2019 में. पीड़िता ने दावा किया आरोपी ने उसके मकान का पता लगाकर उसके घर पर पहुंचा और जबरदस्ती शारीरिक संबंध ( forceful sexual relationship) बनाया. आरोपी ने पीड़िता को धमकाते हुए कहा था कि अगर उसने यह बात किसी से बताई तो वह उसके भाई की हत्या कर देगा.

सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता ने अपना बयान दर्ज करवाया. पीड़िता ने कहा कि युवक उसे अपने छत्तरपुर आवास में ले जाकर जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाया था. इसके बाद पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर 22.22.2019 को मामले में चार्जशीट दायर किया. अब बीएनएसएस की धारा 183 (BNSS Section 183) के तहत इकबालिया बयानों और बयानों की रिकॉर्डिंग की जाएगी, जो कि पहले सीआरपीसी की धारा 164 के तहत होती थी.

आरोपी युवक ने एफआईआर रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच कथित संबंधों में शिकायतकर्ता (युवती) की सहमति नहीं थी. अदालत ने गौर किया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप और धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए बयान अपीलकर्ता (युवक) के खिलाफ कथित अपराधों दिखाने को पर्याप्त हैं, जो प्रस्तुत किए साक्ष्य के आधार पर कानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार बनते हैं.

FIR की धाराओं को जानें

आईपीसी की धारा 376 बलात्कार के मामले में सजा का प्रावधान करता है, वहीं 376 सब-सेक्शन 2. n के तहत, अगर कोई व्यक्ति एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार करता है, तो उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की हो सकती है, जिसका अर्थ है उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास, और वह जुर्माने का भी उत्तरदायी होगा.

आईपीसी की धारा 506: आपराधिक धमकी के लिए सजा का प्रावधान,

जो व्यक्ति किसी को अपराधिक धमकी देता है तो उसका दोष सिद्ध होने पर दो साल की जेल और जुर्माना, दोनों हो सकता है. वहीं अगर कोई व्यक्ति किसी को जान से मारने या चोट पहुंचाने की धमकी देता है, तो दोष सिद्ध होने पर उसे सात साल जेल की सजा होगी.

केस टाइटल: प्रशांत बनाम दिल्ली राज्य