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'शराब पीने की जांच के लिए ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट प्रमाणिक नहीं', SC के फैसले को Patna HC ने दोहराया, Excise Act में FIR के नियमों को स्पष्ट किया

पटना हाई कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को दोहराते हुए कहा है कि ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट को शराब के सेवन का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है.

Patna HC, Breathlyser

Written by Satyam Kumar |Published : February 28, 2025 2:35 PM IST

बिहार में शराबबंदी है. पुलिस चेकिंग के दौरान ब्रीथ एनालाइजर लगाकर चेक करते हैं और उसी टेस्ट के आधार पर शख्स के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेते हैं. अब पटना हाई कोर्ट ने साफ तौर पर आबकारी अधिनियम (Excise Act) में ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा, शराब सेवन की पुष्टि के लिए पुलिस को ब्लड और यूरिन टेस्ट पर भरोसा करना पड़ेगा. इस फैसले को सुनाते वक्त पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने शराब सेवन की पुष्टि के लिए ब्लड और यूरिन जांच को प्रमाणिक करार दिया है.

ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर नहीं हो सकेगी FIR

एक्साइज एक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि एक्साइज अधिनियम के तहत, ब्रीथालाइज़र परीक्षण के परिणामों के आधार पर केवल एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दोहराते हुए कहा है कि ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट को शराब के सेवन के परीक्षण का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है और आबकारी अधिनियम के तहत, केवल इस आधार पर FIR दर्ज नहीं की जा सकती है.

पटना हाई कोर्ट ने कहा,

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"अब सरकार को यह तय करना पड़ेगा कि आबकारी नीति में संशोधन लाया जाए या नहीं, जिसके तहत आबकारी अधिनियम मामलों में गिरफ्तार किए गए लोगों को सच्चाई सामने लाने के लिए मेडिकल टेस्ट से गुजरना होगा."

पटना हाई कोर्ट ने आगे कहा,

"शराब पीने के आरोप में पकड़े गए सभी लोगों का मेडिकल टेस्ट करवाना व्यावहारिक रूप से कठिन है."

वहीं, इस मामले में, आरोपी-याचिकाकर्ता का ब्लड और यूरिन टेस्ट नहीं किए गए थे, और केवल ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी. पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दोहराते हुए कहा है कि ब्रीथालाइजर परीक्षण को शराब के सेवन का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता है.

क्या है मामला?

इस मामले में याचिकाकर्ता को कथित तौर पर 2 मई 2024 के दिन किशनगंज में अपने अस्थायी निवास पर नशे की हालत में पाया गया था, जिसे आबकारी टीम ने ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर गिरफ्तार कर उसके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जो वर्तमान में स्पेशल कोर्ट के समक्ष लंबित है. व्यक्ति ने इस FIR को रद्द करने की मांग को लेकर पटना हाई कोर्ट में रिट दायर की.

याचिकाकर्ता और राज्य के विद्वान वकीलों को सुनने और रिकॉर्ड पर रखी गई पूरी सामग्री को ध्यान में रखते हुए पटना हाई कोर्ट ने कहा कि इस अदालत के पास यह मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर विचार करने में विफल रहे और ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर, जिसे शराब पीने का निर्णायक सबूत नहीं कहा जा सकता है, एफआईआर दर्ज की गई है.

अधिवक्ता शिवेश सिन्हा ने एएनआई से बात करते हुए कहा बताया कि 1971 में सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय है जिसमें कहा गया है कि चिकित्सा न्यायशास्त्र के अनुसार, शराब के सेवन के लिए केवल रक्त परीक्षण और मूत्र परीक्षण ही निर्णायक प्रमाण हैं।" यह स्पष्ट करता है कि केवल ब्रीथालाइजर परीक्षण के आधार पर एफआईआर दर्ज करना कानून के खिलाफ है.