नई दिल्ली: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) का सार स्वतंत्र रूप से सोचने और बोलने की क्षमता से है और साथ ही सरकार द्वारा प्रतिशोध, प्रतिबंध या दमन के डर के बिना प्रकाशन और सार्वजनिक प्रवचन के माध्यम से दूसरों से जानकारी प्राप्त करने की क्षमता को भी इसी स्वतंत्रता के दायरे में शामिल किया जाता है.
कई बार लोग इस स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल करते हुए अपने कृत्यों के जरिए अश्लील आचरण को बढ़ावा देते हैं. इन्हीं तरह के कृत्यों से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता में कई प्रावधान किए किए गए हैं. आइए जानते हैं, इन प्रावधानों के संबंध में कुछ अहम बातें.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1 'अश्लीलता' के अर्थ को समझाने का प्रयास करती है, और उप-धारा 2 में अश्लील सामग्री की बिक्री के अपराध की सजा तय करती है.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1 के अनुसार धारा 292 की उप-धारा 2 के संबंध में पुस्तक, पैम्फलेट आदि को अश्लील तब माना जाएगा यदि वह या तो कामुक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रुचिकर है या इसके किसी भी भाग से ऐसे लोगों को भ्रष्ट किया जा रहा है या उन लोगों को भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है जो संभावित तौर पर इन पुस्तक, पैम्फलेट आदि को पढ़ेंगे या देखेंगे.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1a के अनुसार किसी भी अश्लील पुस्तक, पैम्फलेट, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण, इत्यादि को बेचता है, किराए पर देता है, वितरित करता है, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है या किसी भी तरह से प्रचलन में लाता है, या बिक्री, किराया, वितरण, सार्वजनिक प्रदर्शनी के लिए ऐसी चीज़ों को अपने कब्ज़े में रखता है तो वह इस अपराध का दोषी माना जाएगा.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1b के अनुसार पूर्वोक्त उद्देश्यों में से किसी भी उद्देश्य के लिए किसी अश्लील वस्तु का आयात, निर्यात या संवहन (Convey) करता है, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसी वस्तु को बेचा जाएगा, किराए पर दिया जाएगा, वितरित किया जाएगा या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाएगा या किसी भी तरह से प्रचलन में लाया जाएगा; या
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1c के अनुसार जब एक व्यक्ति किसी भी ऐसे व्यवसाय में भाग लेता है या उससे लाभ प्राप्त करता है, जिसके दौरान वह जानता है या विश्वास करने का कारण है कि ऐसी कोई भी अश्लील वस्तु, पूर्वोक्त उद्देश्यों में से किसी के लिए उत्पादित, निर्मित, खरीदी, रखी, आयात, निर्यात, संवहन, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की जाती है या किसी भी तरह से प्रचलन में लाया गया; या
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1d के अनुसार जब कोई व्यक्ति इस तरह की सामग्री का विज्ञापन करता है या किसी भी तरह से ज्ञात हो कि कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में शामिल है या शामिल होने के लिए तैयार है जो इस धारा के तहत एक अपराध है, या ऐसी कोई भी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या उसके माध्यम से प्राप्त की जा सकती है.
IPC की धारा 292 की उप-धारा 1e के अनुसार ऐसा कार्य करने का प्रस्ताव या प्रयास करता है जो इस धारा के तहत अपराध है.
IPC की धारा 292 की उप-धारा a से d तक में किए गए ऐसे कार्यों को अंजाम देने वाले व्यक्तियों को 2 साल तक की जेल या 2000 रुपये तक के जुर्माने की सज़ा हो सकती है. वहीं, यदि कोई व्यक्ति इस अपराध को दोहराता है, तो इस स्थिति में उसे 5 साल तक की जेल या 5000 रुपये तक के जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
यदि उपरोक्त कार्य, जनता की भलाई के लिए किया गया हो या जब इसका उपयोग किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा हो, तो इन दोनों स्थितियों में यह कार्य इस धारा के तहत अपराध नहीं माने जाएंगे.
एक प्राचीन स्मारक या मंदिर, या मूर्तियों को ले जाने के लिए उपयोग की जाने वाला वाहन या धार्मिक उद्देश्यों के लिए रखे या उपयोग किया जाने वाला कोई भी निरूपण आदि को भी इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.
IPC की धारा 293 के अनुसार जो भी कोई व्यक्ति 20 वर्ष से कम आयु के किसी भी किशोर या युवक को कोई अश्लील वस्तु जैसे कि धारा 292 में बताई गई है, को बेचता है, भाड़े पर देता है, वितरित करता है, प्रदर्शित करता है या परिचालित करता है, या ऐसा करने का प्रस्ताव या प्रयास करता है, तो यह अपराध माना जाएगा.
उस व्यक्ति को 3 साल तक की जेल या 2000 रुपये तक के जुर्माने की सज़ा हो सकती है. वहीं, यदि कोई व्यक्ति इस अपराध को दोहराता है, तो इस स्थिति में उसे 7 साल तक की जेल या 5000 रुपये तक के जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
IPC की धारा 294 के अनुसार जो भी कोई व्यक्ति सार्वजानिक स्थान पर अश्लील हरकतें करता है या अश्लील गाने जाता है, तो दोष साबित होने पर उसे 3 महीने के कारावास या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.