नई दिल्ली: संसद का इस साल का मॉनसून सत्र (Monsoon Session) शुरू हो चुका है जिसमें कोई न कोई गतिविधि चलती रहती है। 26 जुलाई, 2023 को विपक्ष ने लोक सभा में सरकार के खिलाफ एक अविश्वास प्रस्ताव जारी किया है जिसे सभापति ने एक्सेप्ट कर लिया है और इसपर अगले हफ्ते सुनवाई भी होगी।
अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है, इसका उद्देश्य क्या है, इसे किन परिस्थितियों में जारी किया जाता है और इसको पारित करने के लिए किन शर्तों का पूरा होना जरूरी है, आइए विस्तार से समझते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सरकार तब तक पावर में रहती है, जब तक लोक सभा (Lok Sabha) में इसे बहुमत मिलती है; वो इसके समर्थन में खड़े रहते हैं। विपक्ष को अगर सरकार के विरुद्ध अपना अविश्वास व्यक्त करना होता है ,तो वो सदन में एक प्रस्ताव जारी करते हैं जिसे अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) कहा जाता है।
भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का अलग से उल्लेख नहीं किया गया है लेकिन अनुच्छेद 75 (Article 75 of The Constitution of India) में यह स्पष्ट किया गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है और वो तब तक पावर में रहते हैं जब तक उन्हें लोक सभा का समर्थन और सहयोग मिलता है।
अविश्वास प्रस्ताव जारी करने का मतलब यह है कि विपक्ष को सरकार और उनके काम करने के तरीके में विश्वास नहीं है और वो नहीं चाहते कि देश इस सरकार द्वारा चलाया जाए। सदन में अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो सरकार यानी प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) को तुरंत इस्तीफा देना होता है।
लोक सभा का कोई भी सदस्य सदन में 'नो-कॉन्फिडेंस मोशन' को जारी कर सकते हैं और इसकी प्रक्रिया को विस्तार से लोक सभा की नियमावली में 'नियम संख्या 198' में समझाया गया है। मोशन को जारी करने के लिए जरूरी है कि इस प्रस्ताव को सदन के कम से कम 50 सदस्यों को समर्थन मिले।
यह प्रस्ताव लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, इसपर उस सदस्य के हस्ताक्षर होने चाहिए जिसने इसे इनिशीएट किया है और फिर कार्यवाही वाले दिन पर इसे लोक सभा के अध्यक्ष (Speaker of Lok Sabha) को सबमिट कर दिया जाना चाहिए।
बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव लोक सभा के स्पीकर के पास सुबह 10 बजे से पहले पहुँच जाना चाहिए और फिर स्पीकर इस प्रस्ताव को सदन के सामने पढ़कर सुनाएंगे। लोक सभा के सभापति चाहें तो इस प्रस्ताव को खारिज कर सकते हैं वरना इसे डिस्कशन और डिबेट के लिए मंजूर कर सकते हैं।
प्रस्ताव को एक बार सभापति की मंजूरी मिल जाती है तो फिर एक तिथि और समय तय किया जा है जब इसपर चर्चा होगी। बता दें कि यह दिन प्रस्ताव कि स्वीकृति के दस दिनों के अंदर का होना चाहिए। दस दिन तक अगर प्रस्ताव पर चर्चा हेतु दिन तय नहीं किया जाता है तो नो-कॉन्फिडेंस मोशन अपने आप खारिज हो जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि निर्धारित तिथि पर लोक सभा में प्रस्ताव पर चर्चा होती है जिसके बाद सरकार उस प्रस्ताव पर अपना जवाब देती है। इस जवाब पर विपक्ष दल के नेता अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं।
चर्चा के बाद इस नो-कॉन्फिडेंस मोशन पर सदन वोटिंग करेगा। प्रस्ताव तब पारित होगा जब उसे सदन में प्रस्तुत सदस्यों की बहुमत का समर्थन मिलेगा। अगर अविश्वास प्रसाव पारित हो जाता है तो सरकार को तुरंत इस्तीफा देना पड़ता है और अगर सरकार जीत जाती है तो प्रस्ताव खारिज हो जाता है और सरकार पावर में रहती है।
1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद से अब तक लोक सभा में कुल मिलाकर 27 नो-कॉन्फिडेंस मोशन जारी किये गए हैं लेकिन अधिकांश बार यह प्रस्ताव हारे हैं और सरकार का इसपर कोई असर नहीं पड़ा है। जुलाई, 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Desai) की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव जारी किया गया था और वोटिंग से पहले ही उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया था।
श्रीमती इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने बतौर प्रधानमंत्री, कुल मिलाकर 15 बार सदन में अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए सबसे ज्यादा है।