नई दिल्ली: हर किसी के लिए उनकी पहचान पहले उनके नाम से है। अगर आप अपना नाम बदलना चाहते हैं और आपको ऐसा करने से रोका जा रहा है, तो क्या ये आपके मौलिक अधिकारों का हनन है? कानून इस बारे में क्या कहता है और इससे जुड़ा कौन सा नया मामला सामने आया है, आइए विस्तार से समझते हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीश अजय भनोट (Justice Ajay Bhanot) ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि किसी को नाम बदलने से रोकना, उस नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन है। बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) में एक याचिका आई थी, जिसके तहत यूपी बोर्ड से परीक्षा देने वाले एक इंसान को नाम बदलने से रोका जा रहा था, कोर्ट ने अपना फैसला याचिकाकर्ता के हक में सुनाया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अजय भनोट की एकल पीठ का यह कहना है कि नाम बदलने की अनुमति न देना मनमानी है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। बता दें नाम बदलने की अनुमति पर भारत के संविधान में कोई विशेष प्रावधान नहीं है लेकिन इस बारे में कानून ने क्या कहा है, जानिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के तहत, आइए समझते हैं कि अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 21 क्या कहते हैं।
संविधान का अनुच्छेद 14 'समानता का अधिकार' (Right to Equality) के बारे में बात करत है जो एक मौलिक अधिकार है।
अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत देश के सभी नागरिकों को 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार' (Right to Freedom of Speech and Expression) है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में 'जीने के अधिकार' (Right to Life) और 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' (Personal Liberty) के बारे में विस्तार से बताया गया है।
नाम बदलने पर नहीं होनी चाहिए आपत्ति
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह कहना है कि अगर एक व्यक्ति अपना नाम बदलना चाहता है, तो इसमें किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए; यह नागरिक के मौलिक अधिकारों के तहत आता है। ऐसे में, देश के नागरिक को अपना नाम बदलने की पूर्ण स्वतंत्रता है।